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उज्जलउ
(उज्जलअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक
उज्ज्व
ल
(ज) 1/1 सवि
जो
आवइ
(आव) व 3/1 अक (णाअ) 3/1
आता है न्याय से
णाएण
12.
अवरु
अव्यय
.अव्यय
(ज) 1/1 सवि
जहिं
अव्यय
उवयर
उपकार कर (सकता) है
(उवयर) व 3/1 सक (त) 1/1 सवि (उवयार) विधि 2/1 सक
वह
उवयारहि
तित्थु
अव्यय
लइ
उपकार करे वहाँ ग्रहण करके हे मनुष्य जीवन के लाभ को
जिय
जीवियलाहडउ
(लय-लअ) संकृ (जिय) 8/1 [(जीविय)-(लाह+अडअ) 2/1 'अडअ' स्वार्थिक] (देह) 2/1 अव्यय (ले) विधि 2/1 सक (णिरत्थ) 2/1 वि
देह को
मत
मन
बना
णिरत्थु
निरर्थक
13. एक्कहिं इंदियमोक्कलउ
एक (विषय) में अनियन्त्रित इन्द्रिय
पाव
(एक्क) 7/1 वि [(इंदिय)- (मोक्कलअ) 1/1 वि (दे) 'अ' स्वार्थिक (पाव) व 3/1 सक [(दुक्ख)-(सय) 2/2 वि (ज) 6/1 स अव्यय (पंच) 1/2 वि
दुक्खसयाई
पाता है सैंकड़ों दुःखों को जिसकी फिर
जसु
पुणु पंच वि
पाँचों ही
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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