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खणि
क्षण में
जायउ
(खण) 7/1 (जा-जायअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक (सुक्ख)-(घर) 2/1
गया सुख के घर को
सुक्खघरु
10. एत्तहिं
तह
मायरि
माता
दुहभरिया महदुक्खें खविय
अव्यय
इधर (त) 6/1 स
उसकी (मायरि) 1/1 [(दुह)-(भर-भरिय-भरिया) भूक 1/1] दुःख से भरी हुई [(मह) वि-(दुक्ख) 3/1]
अत्यन्त कष्ट से (खव-खविय-खविया) भूक 1/1 बितायी गई (विहावरीय) 1/1 'य' स्वार्थिक रात्रि
विहावरिया
silenkilladt.vall.
(उपस्थित) होकर सुप्रभात में
सुप्पहाए
सयल
सब
मिलिया
मिले
(हु) संकृ (सुप्पहाअ) 7/1 (सयल) 1/2 वि अव्यय (मिल) भूक 1/2 अव्यय (जणणी) 3/1 अव्यय (जोय) 4/1 (चल) भूकृ 1/2
सह
साथ
जणणिए
माता के
जोयहु चलिया
पादपूरक खोजने के लिए चले
12.
सव्वत्थ
अव्यय
सब (सारे)
षष्ठी विभक्ति के लिए 'ह' प्रत्यय का भी प्रयोग होता है। (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 150) द्वितीया विभक्ति साथ में होने से 'जोअ' को हेत्वर्थ कृदन्त का प्रयोग मानें, तो 'जोअ=देखना' होना चाहिए था। तब इसका प्रयोग 'उ' प्रत्यय लगाकर (जोअ+उ) 'जोइउं' होना चाहिए था। यदि हम 'जोय' को संज्ञा मानते हैं तो 'तं' को द्वितीया विभक्ति नहीं कर सकते, उसे अव्यय मानना होगा। यह शब्द विचारणीय है।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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