________________
वणम्मि
गवेसियउ
मह सोएँ पुरजण सोसियउ
(वण) 7/1
वन में (गवेस-गवेसियअ) भूक 1/1 'अ' स्वा. खोजा गया (मह) 3/1 वि
महान (सोअ) 3/1
शोक के कारण [(पुर)-(जण) 1/1]
नगर के जन (सोस-सोसियअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वा. कृश हो गये (थे)
13.
खोज्जु णियंत. जंत संत पत्तइँ गिरि-गुह-वारि
(त) 6/1 स (खोज्ज) 2/1 (णिय-णियंत) वकृ 1/2 (जा-जंत) वकृ 12 (संत) भूक 1/2 अनि (पत्त) भूकृ 1/2 अनि [(गिरि)-(गुह)-(वार) 7/1] अव्यय
उसके मार्ग-चिह्न देखते हुए जाते हुए
थके हुए __ पहुंचे
पर्वत की गुफा के दरवाजे पर
पुणु
फिर
तहिँ
अव्यय
वहाँ
तहु कर-चलणइँ
बहु-दुह-जणणइँ दिट्ठई दहदिसि पडिय
(त) 6/1 स [(कर)-(चलण) 1/2] [(बहु) वि-(दुह)-(जणण) 1/2 वि] (दिट्ठ) भूकृ 1/2 अनि [(दह)-(दिसि) 2/2] (पड) भूकृ 1/2 (तणु) 6/1
उसके हाथ और पैर बहुत दु:ख के जनक देखे गये दसों दिशाओं में पड़े हुए शरीर के
तणु
तृतीया विभक्ति में भी शून्य प्रत्यय का प्रयोग पाया जाता है। (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 147) षष्ठी पुल्लिंग एकवचन के लिए 'हु' प्रत्यय भी काम में आता है। (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 150) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137)
319
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org