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इय
इसकी
णित्तिएँ
नीति से
णरु
(इम-इअ-इय) 6/1 स (णित्ति) 3/1 (ज) 1/1 सवि (णर) 1/1 (ववहर) व 3/1 सक (त) 1/1 सवि (भुंज) व 3/1 सक क्रिविअ (भू-वलअ) 2/1
ववहाइ
मनुष्य व्यवहार करता है
सो
वह
भुंजइ णिच्छउ
उपभोग करता है अवश्य ही
भूवलउ
भू-मण्डल को
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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