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9.
दिट्ठ
महब्भुव
भड - सन्दोहें
णं
पारोह
मुक्क
10.
दिट्ठ
गोहें
उरत्थलु
फाडिउ
चक्कें
दिण-मज्झ
अ
मज्झत्थें
अक्कें
11.
अवणियलु
व
विञ्झेण
विहञ्जिउ
S.
विहि
भाएहिँ
तिमिरु
व
पुञ्जिउ
1.
मह+भुव = महब्भुव
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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(दिट्ठ) भूकृ 1 / 2 अनि (महब्भुव ) 1 / 2
[ ( भड) - (सन्दोह ) 3 / 1]
अव्यय
(पारोह) 1/2
(मुक्क) भूक 1/2 अनि
(णग्गोह ) 3 / 1
(दिट्ठ) भूकृ 1 / 2 अनि
( उरत्थल) 1 / 1
(फाड) भूकृ 1 / 1
( चक्क ) 3 / 1
[(दिण) - (मज्झ) 1 / 1 ]
अव्यय (दे)
(मज्झत्थ) 3 / 1 वि
(3190) 3/1
[ ( अवणि) - (यल) 1 / 1]
अव्यय
(fast) 3/1
(विहञ्ज) भूक 1 / 1
अव्यय
(वि) 3 / 2 वि
(1737) 3/2
( तिमिर) 1 / 1
अव्यय
(पुञ्ज) भूकृ 1 / 1
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देखी गई
महाभुजाएँ
योद्धाओं के समूह द्वारा
मानो
शाखाएँ
निकाली हुई
बड़ के पेड़ के द्वारा
देखी गई
छाती
फाड़ी हुई
चक्र के द्वारा
दिन का बीच
मानो
मध्य में स्थित
सूर्य के द्वारा
पृथ्वीतल
मानो
विंध्य के द्वारा
विभक्त कर दिया गया
मानो
विविध
भागों द्वारा
अँधकार
मानो
इकट्ठा किया गया
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