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2.11
परवसुरयहो
[(पर) -(वसु)-(स्य)' 6/1]
अंगारयहो सूलिहिँ-सूलिहिं भरणं जायं
(अंगारय)' 6/1 (सूली) 7/1 (भरण) 1/1 वि (जाय, भूकृ 1/1 अनि (मरण) 1/1
परद्रव्य में अनुरक्त होने के कारण अंगारक के द्वारा सूली पर धारण करनेवाला प्राप्त किया गया
मरणं
मरण
इसको
णिएवि
जानकर
(इम) 2/1 सवि (णिअ) संकृ (जण) 1/1 अव्यय
जणो
मनुष्य
उस समय
अव्यय
भी
मूढमणो
सूख
चोरी
चोरी
करइ
(मूढमण) 1/1 वि (चोरी) 2/1 (कर) व 3/1 सक अव्यय (परिहर) व 3/1 सक
करता है
जउ
णउ
नहीं
परिहरइ
छोड़ता है
(ज) 1/1 सवि [(पर) वि-(जुवइ) 2/1]
परजुवइ
जो अन्य की स्त्री को लोक में चाहता है
अव्यय
अहिलसइ
(अहिलस) व 3/1 सक (त) 1/1 सवि
वह
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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