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अहवा
अव्यय
अथवा
अव्यय
जहाँ
जिह
अव्यय
जिस प्रकार
जेण
(ज) 3/1 स
जिसके द्वारा
किर
अव्यय
पादपूरक
जिह
अव्यय
जैसी
अवसमेव होएवउ
अव्यय (हो-होएवउ) विधि कृ. 1/2 अव्यय
अवश्य ही उत्पन्न की जानी चाहिए (जायेंगी)
तं
वहाँ
तिह
अव्यय
उसी प्रकार
तेण
उसके द्वारा
देसिएण
(त) 3/1 सवि अव्यय (देहिअ) 3/1 अव्यय (एक्कंग) 3/1 वि [(सह-सहेवउ) विधि कृ. 1/2]
एक्कंगेण सहेवउ
व्यक्ति के द्वारा वैसे अकेले सही जानी चाहिए (सही जायेंगी)
8.32
1.
सुलहउ
पायालए
सुप्राप्य पाताल में सों का स्वामी स्वाभाविक
णायणाहु
(सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (पायालअ) 7/1 'अ' स्वार्थिक [(णाय)-(णाह) 1/1] (सुलहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(काम)+(आउरे)] [(काम)-(आउर) 7/1 वि] [(विरह)-(डाह) 1/1] |
सुलहउ
कामाउरे
काम से पीड़ित में विरह का संताप
विरहडाहु
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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