________________
पुच्छियउ
मुणिचन्दु मत्तमायंगु णामेण
भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक (पुच्छ-पुच्छिय-पुच्छियअ) भूकृ 1/1 पूछे गये 'अ' स्वार्थिक (मुणिचन्द) 1/1
मुनिचन्द (मत्तमायंग) 1/1
मत्तमात्तंग (णाम) 3/1
नाम से (इय) 1/1 सवि (छन्द) 1/1
छन्द
यह
मेरुपर्वत
जिह
जिस प्रकार
थिरु
स्थिर
तिह
बुहयणहिँ कुंभरासि पभणिज्जइ
उसी प्रकार ज्ञानियों द्वारा कुम्भराशि कही जाती है
महु
(मंदर) 1/1 अव्यय (थिर) 1/1 वि अव्यय (बुहयण) 3/2 (कुंभरासि) 1/1 (पभण) व कर्म 3/1 सक (अम्ह) 6/1 स (तणअ) 2/1 अव्यय (एरिस) 2/1 वि (मुण+इवि) संकृ (मुणिवर) 8/1 (णाम) 1/1 (रअ) व कर्म 3/1 सक
मेरा
तणउ
पुत्र
तणउ
सम्बन्धार्थक परसर्ग ऐसा
एरिसु
मुणिवि मुणिवर णामु
जानकर हे मुनिवर नाम रचा जाता है (रचा जाए)
रइज्जइ
3.6
.
उसको
सुणिऊण
(त) 2/1 स (सुण) संकृ (प्रा.)
सुनकर
४
293
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org