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विलासिणिमंदिरासु'
3.
गयमोल्लइँ
णणण
पियाइँ
तहिँ
वणिणा
ताहे
समप्पियाइँ
4.
सरयागसमससहर आणणीहे
पुणु
कहियउ
तेण
विलासिणी हे
5.
म
मारिउ
वे
णरवई हिँ
इउ
कहियउ
सयलु
1.
2.
301
(विलासिणि) - (मन्दिर) 6/1
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[[ ( गय) भूक अनि - (मोल्ल) 1 / 2] वि] मूल्य चले गये
[ ( जण) - (णयण) 4 / 2]
(पिय) 1/2 वि
अव्यय
(वणि) 3 / 1 (प्राकृत)
(ता) 4 / 1 स
(समप्प - समप्पिय) भूक 1/2
[ ( सरय) + (आगम) + (ससहर) +
( आणाणीहे)] [[ (सरय) - (आगम) - ( ससहर) - ( आणण - (स्त्री) आणणी) 4/1] fa]
अव्यय
( कह - कहिय - कहियअ) भूकृ 1 / 1 'अ' स्वार्थिक
(त) 3 / 1 स
( विलासिणि) 4 / 1
( अम्ह) 3 / 1 स
( मार-मारिअ ) भूकृ 1/1
(णंदण) 1 / 1
( णरवइ) 6 / 1
(इअ) 1/1 स
( कह - कहिय कहियअ ) भूक 1 / 1 अ स्वार्थिक
( सयल) 1 / 1 वि
विलासिनी के घर को
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मनुष्यों के नयनों के लिए
प्रिय
वहाँ
are के द्वारा
उसके लिए
प्रदान किए गए
शरदऋतु में आनेवाले चन्द्रमा की तरह मुखवाली के लिए (को)
फिर
कहा गया
उस (वणिक) के द्वारा विलासिनी के लिए (को)
मेरे द्वारा
मारा गया
पुत्र
◎
राजा का
यह
कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 151
कही गई
सारी ही
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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