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(खग)-(किराय)-(उवसग्ग) 6/1
खगकिरायउवसग्गहँखगकिरायउवसग्गह चुक्किय
विद्याधरों और किरात के उपद्रव से रहित हुई
(चुक्क) भूकृ 1/1
रोहिणि
खरजलेण संभाविय सीलगुणेण
(रोहिणि) 1/1 [(खर) वि-(जल) 3/1] (संभाविय) भूकृ 1/1 अनि [(सील)-(गुण) 3/1] (णई) 3/1 अव्यय (वह -- (प्रे.) वहाव- (भूकृ) वहाविय- वहाइय--(स्त्री) वहाइया) भूकृ 1/1
रोहिणी तेज धारवाले जल में डुबोई गई शील गुण के कारण नदी के द्वारा नहीं बहाई गयी
णइए
वहाइय
5.
हरि-हलि-चक्कवद्दिजिणमायउ
[(हरि)-(हलि)-(चक्कवट्टि)-(जिण)(माआ) 1/2] अव्यय
नारायण, बलदेव, चक्रवर्ती तथा तीर्थंकरों की माताएँ आज
अज्जु
वि
अव्यय
भी
तीन लोक में
तिहुयणम्मि विक्खायउ
(ति-हुयण) 7/1 (विक्खाया) भूकृ 1/2 अनि
प्रसिद्ध
एयउ सीलकमलसरहंसिउ
फणिणरखयरामरहिँफणिणरखयरामरहिं
(एया) 1/2 सवि [(सील)-(कमल)-(सर)-(हंसी) 1/2] शीलरूपी कमल-सरोवर की
हंसिनी [(फणि)+(णर)+ (खयर)+(अमरहिँ)] नागों, मनुष्यों, आकाश में [(फणि)-(णर)-(ख-यर)-(अमर) 3/2] चलनेवाले (विद्याधरों) और
देवों द्वारा (पसंस- (स्त्री) पंससी) 1/2 वि प्रशंसित
पसंसिउ
श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 151 कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)। कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137)।
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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