________________
जइ
अव्यय
यदि नहीं मानता है स्वीकार किए हुए को
अव्यय (सर) व 3/1 सक (पडिपवण्णअ) 2/1
सरइ
पडिपवण्णउं
16.20
दूएण जंपियं
तब दूत के द्वारा कहा गया
कि
क्या
अप्रिय
सुविप्पियं भणसि
कहते हो
भो
अव्यय (दूअ) 3/1 (जप-जंपिय) भूकृ 1/1 (क) 1/1 सवि (सु-विप्पिय) 2/1 वि (भण) व 2/1 सक अव्यय (कुमार) 1/1 (वाण) 1/2 [(भरह)-(पेस-पेसिय) भूकृ 1/2] [(पिछ)-(भूसिय) भूकृ 1/2 अनि] (हो) व 3/2 अक (दु-णिवार) 1/2 वि
कुमारा
कुमार
वाणा
वाण
भरहपेसिया पिंछभूसिया होति दुण्णिवारा
भरत के द्वारा भेजे हुए पंख से विभूषित होते हैं कठिनाईपूर्वक हटाये जानेवाले
पत्थरेण
पत्थर से
किं
मेरु
क्या मेरु (पर्वत) टुकड़े-टुकड़े किया जाता है
दलिज्जइ
(पत्थर) 3/1
अव्यय (मेरु) 1/1 (दल) व कर्म 3/1 सक अव्यय (खर) 3/1 (मायंग) 1/1 (खल) व कर्म 3/1 सक
कि
क्या
गधे के द्वारा
खरेण मायंगु खलिज्जइ
हाथी गिराया जाता है
223
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org