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वणि चारुदत्तु
18.
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परम्मुह
छुट्ट
19.
संतु
जे
सूर
होति
सवरा
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हु
वि
सो
णउ
हति
20.
वर्णे
तिण
चरंति
णिसुवि
खड्डूकउ
णिरु
ति
21.
वणमयउलाई
267
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(वणि) 1 / 1 वि
( चारुदत्त) 1 / 1
[ ( कय) भूक अनि - ( दीण) fa-(au) 1/1]
( णास) वकृ 1 / 1
(परम्मुह ) 1 / 1 वि
[(छुट्ट) भूक अनि - (केस) 1 / 1]
(ज) 1/2 सवि
(सूर) 1/2 वि
(हो) व 3/2 अक
( सवर) 1 / 2
अव्यय
अव्यय
(त) 1 / 1 सवि
(त) 1 / 2 सवि
अव्यय
(हण) व 3 / 2 सक
(वण) 7/1
(farm) 2/1
(चर) व 3 / 2 सक
(णिसुण + एवि)
संकृ
(खड्ढकअ ) 2 / 1
अव्यय
(डर) व 3 / 2 अक
[ ( वण) - (मय) - (उल) 2 / 2]
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व्यापारी
चारुदत्त
बना दिया गया, दयनीय,
वेश
दूर हटाती हुई विमुख
काट दिये गये, बाल
जो
वीर
होते हैं
शबरों का
चाहे
वह
वे
नहीं
मारते हैं
वन में
घास
चरते हैं
सुनकर
खड़खड़ आवाज
निश्चित
डर जाते हैं
वन में रहनेवाले मृगों के
समूह को
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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