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खरपहरणधारादारिएण
प्रखर, आयुधों की, धारों से विदारित
कि
[(खर) वि-(पहरण)-(धारा)(दार-दारिअ) भूक 3/1] (क) 1/1 सवि [(किंकर)-(णियर) 3/1] (मार-मारिअ) भूक 3/1
क्या
किंकरणियरें मारिएण
अनुचर समूह से मारे गए
10.
किर
काई
वराएं
अव्यय
पादपूरक (काइं) 1/1 सवि
क्या (वराअ) 3/1 वि
बेचारों से (दंड-दंडिअ) भूकृ 3/1
सजा दिये हुए (से) [(सीमंतिणी-सीमंतिणि)-(सत्थ) 3/1] नारी समूह से (रंड-रंडिअ) भूकृ 3/1
विधवा किए हुए
दंडिएण सीमंतिणिसत्थें रंडिएण
11.
दोनों के
E
सम्बन्धवाचक मध्यस्थित
मज्झत्थ
होवि
(दो) 6/2 वि अव्यय परसर्ग (मज्झत्थ) 1/1 (हु+अवि) संकृ (आउह) 2/1 (मेल्ल+इवि) संकृ [(खम)-(भाअ) 2/1] (ले+एवि) संकृ
आउहु मेल्लिवि
होकर आयुध (को) छोड़कर क्षमाभाव को धारण करके
खमभाउ
लेवि
12. अवलोयंतु धराहिवइ एत्तिउ
(अवलोय) वकृ 1/1
समझते हुए (धराहिवइ) 8/1
हे राजन् (एत्तिअ) 1/1 वि
इतना (कि+इज्ज) विधि कर्म 3/1 सक किया जाए (सुत्त) भूक 2/1 अनि
भली प्रकार कहे हुए को; (सुजुत्तअ) भूकृ 2/1 अनि 'अ' स्वार्थिक उपयुक्त
किज्जउ
सुत्तु सुजुत्तउ
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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