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पाठ - 10 सुदंसणचरिउ
सन्धि
- 2
2.10
आयण्णि
(आयण्ण) विधि 2/1 सक (पुत्त) 8/1
पुत्त
सुनो हे पुत्र जिस प्रकार आगम में
जह
अव्यय
आगमे
(आगम) 7/1
सातों
वि
ही, सभी
(सत्त) 1/2 वि अव्यय (वसण) 1/2 (वुत्त) भूकृ 1/2 अनि
वसण
व्यसन
वृत्त
कहे गये (समझाये गये)
सप्पाइ
दुक्खु
इह
यहाँ
दिति
[(सप्प)+(आइ)] [(सप्प)-(आइ) 1/2] सर्प आदि (दुक्ख) 2/1
दुःख को अव्यय (दा) व 3/2 सक
देते हैं (एक्क) 7/1 वि
एक (भव) 7/1
जन्म में (दुण्णिरिक्ख) 2/1 वि
कठिनाई से विचार किये जानेवाले
एक्कर
भवे दुण्णिरिक्खु
1. 2.
संख्यावाचक शब्दों के पश्चात् प्रयुक्त होने पर 'समस्तता' का अर्थ होता है। शून्य विभक्ति, श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 147
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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