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लहु
अव्यय (मुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि
शीघ्र छोड़ दिया जाता है
मुच्चइ
2.
रयणिहि
नयरे
सियालु
पइट्ठउ
(रयणि) 7/1
रात्रि में (नयर) 7/1
नगर में (सियाल) 1/1
गीदड़ (पइट्ठअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक प्रविष्ट हुआ (मुअ) भूक 1/1 अनि
मरा हुआ (बलद्द) 1/1
बैल [(रच्छा)-(मुह) 7/1]
मोहल्ले के मुख पर (दिट्ठअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक देखा गया
मुउ
वलदु रच्छामुहे दिट्ठउ
3
भक्खंतेण दंत-वणे काणिउँ
(भक्ख-भक्खंत) वकृ 3/1 [(दंत)-(वण) 7/1] (काण-काणिअ) भूकृ 1/1 (रयणि)-(विराम)-(पमाण) 1/1
अव्यय (जाण-जाणिअ) भूकृ 1/1
खाते रहने के कारण दाँतों के समूह से ढीला हो गया रात्रि की समाप्ति की सीमा नहीं जानी गयी
रयणिविरामपमाणु
जाणिउँ
पहाए
(हु-हुअ) भूक 7/1 (पहाअ) 7/1 [(वस)-(आमिस)-(मुज्झ-मुज्झिअ) भूकृ 1/1] [(जण)-(संचार)-(वमाल) 3/1]
होने पर प्रभात बैल के माँस में मोहित
वस-आमिसमुज्झिउ
जणसंचारवमाले
मनुष्यों के आवागमन के कोलाहल से होश में आया (समझा)
बुज्झिउ
(बुज्झ-बुज्झिअ) भूक 1/1
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) यहाँ अनुस्वार का आगम हुआ है। अनुस्वार का अनुनासिक किया गया है।
2.
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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