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गया
गउ परतीरे
दूसरे किनारे पर पृथ्वी के धन के तुल्य
पुहइधण-तुल्लउ
(गअ) भूक 1/1 अनि [(पर) वि-(तीर) 7/1] [(पुहइ)-(धण)-(तुल्लअ) 1/1 वि। 'अ' स्वार्थिक (एक्क) 1/1 वि अव्यय (रयण) 1/1 (किण-किणिअ) भूक 1/1 (बहुमोल्लअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक
एक्कु जि
एक
रयणु किणिउ बहुमोल्लउ
रत्न खरीदा गया बहुमूल्य
चडिवि
चढ़कर
पोइ
लंधइ सायरजलु आवंतउ
जहाज पर पार करता है (पार किया) सागर के जल को
(चड+इवि) संकृ (पोअ) 7/1 (लंध) व 3/1 सक [(सायर)-(जल) 2/1] (आ-आवंत आवंतअ) वकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक (चिंत) व 3/1 सक (मण) 7/1 (मंगल) 2/1 वि
चिंतइ
पहुँचते हुए सोचता है (सोचने लगा) मन में
मणे .
मंगल
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जब
वेलाउलु
अव्यय (वेलाउल) 2/1 (पाव) व 1/1 सक
पावमि तहि
अव्यय
पुणु
बन्दरगाह को पहुँचता हूँ (पहुँचूँगा) वहाँ फिर बेचता हूँ (बेचूंगा) इस माणिक, रत्न (को) अत्यधिक कीमतवाले
विक्कमि
अव्यय (विक्क) व 1/1 सक (एअ) 2/1 सवि (माणिक्क) 2/1 (महागुण) 2/1 वि
एउ माणिक्कु
महागुणु
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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