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पहाणउ
भणइ विहीसण-राणउ एत्तिउ रुअमि दसासहो'
(पहाणअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक
प्रधान (भण) व 3/1 सक
कहता है (कहा) [(विहीसण)-(राणअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक] विभीषण राजा अव्यय
इतना (रुअ) व 1/1 अक
रोता हूँ [(दस) + (आसहो)]
दसमुखवाले (रावण) [[(दस) वि-(आस) 6/1] वि] के द्वारा (भर) भूकृ 1/1
भर दिया गया (भुवण) 1/1
जगत अव्यय (अयस) 6/1
अपयश से
भरिउ
भुवणु
अयसहो
2.
एण
सरीरें अविणय-थाणे दिट्ठ-णट्ठ-जल-विन्दु-समाणे
(ण-पेण-एण) 3/1 सवि (प्रा.) (सरीर) 3/1 [[(अविणय)-(थाण)] 3/1 वि] [(दिट्ठ) भूकृ अनि-(ण8) भूकृ अनि(जल)- (विन्दु)-(समाण) 3/1]
इस शरीर के द्वारा दोष के घर देखा गया, नाश को प्राप्त जल-बिन्दु के समान
सुरचावेण
[(सुर)-(चाव) 3/1] अव्यय [[(अथिर) वि-(सहाव) 3/1] वि] [(तडि)- (फुरण) 3/1] अव्यय [(तक्खण)-(भावें)] तक्खण अव्यय (भाव) 3/1
इन्द्र धनुष के समान अस्थिर-स्वभाववाले बिजली की चमक के
अथिर-सहावें तडि-फुरणेण
समान
तक्खण-भावें
शीघ्र (परिवर्तनशील) अवस्था होने से
4.
रम्भा-गब्भेण [(रम्भा)-(गन्भ) 3/1]
केले के पेड़ के भीतर (के
भाग) के 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत
व्याकरण 3-134) 2. तुल्य (समान) का अर्थ बताने वाले शब्दों के साथ तृतीया या षष्ठी विभक्ति होती है।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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