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(अम्ह) 6/1 स (धरणीयल) 2/1
मेरी जमीन को
धरणीयलु
जो
हत्थेण
हाथ से छूता है
छिवइ
वह
केहउ
कैसा
(ज) 1/1 सवि (हत्थ) 3/1 (छिव) व 3/1 सक (त) 1/1 सवि (केह-अ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक अव्यय (कयंत) 1/1 [(काल)+(अणलु)] [(काल)-(अणल) 1/1] (जेहअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक
कि
क्या
यम
कयंतु कालाणलु
कालरूपी अग्नि जैसा
जेहउ
सो
पणवमि
उसको प्रणाम करता हूँ (करूँ) कौन
वह
(अम्ह) 1/1 स (त) 2/1 सवि (पणव) व 1/1 सक (क) 1/1 सवि (त) 1/1 सवि (भण्णइ) व कर्म 3/1 सक अनि (महिखंड) 3/1 (कवण) 6/1 स [(परम)+(उण्णइ)] [(परम) वि-(उण्णइ) 1/1]
भण्णइ महिखंडेण
कही जाती है पृथ्वीखण्ड के कारण किसकी
कवण
परमुण्णइ
परम उन्नति
अव्यय
क्या
जन्म पर
जम्मणि
(जम्मण) 7/1 देवहिं
(देव) 3/2 अहिसिंचिउ
(अहिसिंच) भूकृ 1/1 द्वितीया विभक्ति के अर्थ में 'सो' का प्रयोग विचारणीय है।
देवताओं के द्वारा अभिषेक किया गया
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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