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8.
ण
करभरु
केसरिकंधर
पर
मुहिय
इ
भुंजंति
वसुंधर
9.
अज्ज
वि
ते
सिज्झति
ण
जेण
जि
पइसइ
पट्टणि
चक्कु
ण
तेण
जि
ता
विगया
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(दा) व 3 / 2 सक
अव्यय
[(कर) - (भर) 2 / 1 ]
[[ ( केसरि) - (कंधर) 1 / 1] वि]
अव्यय
( मुहिय) 6 / 1 (दे)
अव्यय
(भुंज) व 3 / 2 सक
(वसुंधरा) 2 / 1
अव्यय
अव्यय
(त) 1 / 2 स
(सिज्झ ) व 3 / 2 सक
अव्यय
(ज) 3/1 स
अव्यय
( पइस) व 3 / 1 सक
(पट्टण ) 7/1
( चक्क ) 1/1
अव्यय
(त) 3 / 1 स
अव्यय
16.7
अव्यय
(विगय) भूकृ 1 / 1 अनि
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देते हैं
नहीं
कर की राशि
सिंह के समान गर्दनवाले
किन्तु
बिना
भोगते हैं
पृथ्वी को
आज
भी
के मूल्य
जीते जाते हैं
नहीं
जिस कारण से
प्रवेश करता है
नगर में
चक्र
नहीं
उस कारण से
क
तब
गया
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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