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परवसे
दूसरे के वश में
उसकी
तस्स किं
[(पर) वि-(वस) 7/1] (त) 6/1 स (क) 1/1 सवि (बुहत्त) 1/1
क्या
बुहत्तं
विद्वत्ता
2.
कंचणकंडे जंबुउ विंध मोत्तियदामें
[(कंचण)-(कंड) 3/1] (जंबुअ) 2/1 'अ' स्वार्थिक (विंध) व 3/1 सक (मोत्तिय)-(दाम) 3/1 (मंकड) 2/1 (बंध) व 3/1 सक
सोने के तीर से सियार को आहत करता है मोती की रस्सी से बन्दर को बाँधता है
मंकडु
बंधइ
खीलयकारणि देउलु मोडइ सुत्तणिमित्तु
[(खीलय)-(कारण') 3/1] (देउल) 2/1 (मोड) व 3/1 सक [(सुत्त)-(णिमित्त) 1/1] (दित्त) भूकृ 2/1 अनि (मणि) 2/1 (फोड) व 3/1 सक
खम्भे के प्रयोजन से देवमन्दिर को तोड़ता है सूत के निमित्त दीप्त
दितु
मणि
मणि को
फोड
फोड़ता है
कप्पूरायररुक्खु
कपूर के श्रेष्ठ वृक्ष को
णिसुंभइ कोद्दवछेत्तहुं
[(कप्पूर)+(आयर)+(रुक्खु)] [(कप्पूर)-(आयर)-(रुक्ख) 2/1] (णिसुंभ) व 3/1 सक (कोद्दव)-(छेत्त) 6/1 (वइ) 2/1 (पारंभ) व 3/1 सक
नष्ट करता है कोदों के खेत की
वह
बाड़
पारंभइ
बनाता है
तिलखलु
तिलों की खल को
1. 2.
(तिल)-(खल) 2/1 श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 144 आयर-आकर श्रेष्ठ, संस्कृत-हिन्दी-कोश, आप्टे।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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