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मज्झे
मध्य में
परिट्ठिय
(मज्झ) 7/1 (परिट्टिय) भूकृ 1/1 अनि (पिहिमि) 1/1
स्थित
पिहिमि
पृथ्वी
जेम
अव्यय
जिस प्रकार चारों सागरों के
चउ-सायरहँ
[(चउ)-(सायर) 6/2]
83.6
.
उसको
णिसुणेवि लवणंकुस-मायए
(त) 2/1 सवि (णिसुण+एवि) संकृ [(लवण)+ (अंकुस)+ (मायए)] [(लवण)-(अंकुस)-(माया) 3/1] (वुत्त) भूक 1/1 अनि (विहीसण) 1/1 [(गग्गिर)-(वाया) 3/1]
सुनकर लवण और अंकुश की माता के द्वारा
वुतु
कहा गया
विहीसणु
विभीषण भरी हुई वाणी से
गग्गिरवायए
णिटुर-हिययहो अ-लइय-णामहो
निष्ठुर हृदय के नाम को मत लो
जाणमि
[(णिठुर) वि-(हियय) 6/1] [(अ)+ (लइ)+ (अ)+(णामहो)] (अ-लइय)-(णाम) 6/1] (जाण) व 1/1 सक (तत्ति) 1/1 अव्यय (कि) व कर्म 3/1 सक (राम) 6/1
जानती हूँ तृप्ति (सन्तोष)
तत्ति
नहीं
किज्जइ
की जाती है (की गई) राम के
3. ..
घल्लिय जेण
(घल्ल) भूकृ 1/1 (ज) 3/1 स
डाली गई जिनके द्वारा
1.
कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
195
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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