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12. पेक्खेवि
देखकर राम के द्वारा
रामेण
समरङ्गणे
रामणहो
(पेक्ख+एवि) संकृ (राम) 3/1 [(समर)+(अङ्गणे)] [(समर)-(अङ्गण) 7/1] (रामण) 6/1 (मुह) 2/2 (आलिङ्ग+एप्पिणु) संकृ (धीर-धीरिअ) भूकृ 1/1 (रुव) व 2/1 अक (विहीसण) 8/1
मुहाइँ आलिंगेप्पिणु धीरिउ
युद्धस्थल में रावण के मुखों को छाती से लगाकर धीरज बँधाया गया रोते हो हे विभीषण
रुवहि
विहीसण
काइँ
अव्यय
क्यों
77.2
:
भ
मय-मत्तउ
जीव-दया-परिचत्तउ
(त) 1/1 सवि
वह (मुअ) भूक 1/1 अनि
मरा हुआ (ज) 1/1 सवि [(मय)-(मत्तअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक
अहंकार के नशे में चूर [[(जीव)-(दया)-(परिचत्तअ) भूकृ 1/1 जीव-दया छोड़ दी गई अनि] वि]
(जिसके द्वारा) [(वय)-(चारित)-(विहूणअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक]
व्रत और चारित्र से हीन [(दाण)-(रणङ्गण) 7/1]
दान और युद्धस्थल में (दीणअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक
वय-चारित्त-विहूणउ
दाण-रणङ्गणे दीणउ
भीरु
2.
सरणाइय-वन्दिग्गहे
[(सरण)+(आइय)+(वन्दिग्गहे)] [(सरण)-(आइय) भूक अनि(वन्दिग्गह) 7/1]
शरण में आए हुए के लिए, (दोषियों को) कैदीरूप में पकड़ने में
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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