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पाठ
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जंबूसामिचरिउ
सन्धि - 9
9.8
(1) विनयश्री के द्वारा (एक) कथानक कहा गया (और) ( उसमें ) संखिणी की निधि की (बात) दूल्हे (जंबूस्वामी) के लिए बतलाई गई । ( 2 ) किसी नगर में दरिद्र (स्थिति) के द्वारा ताड़ा हुआ संखिणी नामक कोई कबाड़ी ( था ) | ( 3 ) ( वह ) प्रतिदिन वन में कबाड़ीपन ( जंगल की विभिन्न वस्तुओं) के लिए भागता था (और) ( फिर भी ) ( उससे प्राप्त कीमत से ) दुःखपूर्वक भोजनमात्र ( ही ) पाता था। (4) कुछ दिनों में भोजन में से बचा हुआ ( पैसा / भोजन) प्राप्त किया गया ( इस प्रकार ) ( उसके द्वारा) एक रुपया रोकड़ी हासिल किया गया । ( 5 ) ( उसके द्वारा ) पत्नी के सहयोग से एकान्त में चढ़ा गया ( जाया गया) (और) ( वहाँ ) (एक) कलश में ( रुपये को ) रखकर, ( वह कलश) धरती में गाड़ दिया गया । (6) बाद में सूर्य - ग्रहण के अवसर पर प्रभात में किसी भी समय निज निवासों को छोड़कर (कुछ लोग उस ) तीर्थ-स्थान को चले । (7) मणि, रत्न और सोने से सम्पन्न अन्य ( व्यक्तियों) के द्वारा संखिणी की निधि देख ली गई । ( 8-9 ) ( उधर ) आए हुए (लोगों) के द्वारा खड़खड़ करते हुए रुपये की असार गति के कारण सोचा गया ( कि ) स्व-मार्ग में लगे हुए लोगों के लिए (रुपये के द्वारा) (कुछ) बतलाया गया है (और उसने) हम (कुछ) ग्रहण कराये जाते हैं । ( 10 ) उस (विषय) में निज भले को सोचकर (उनके द्वारा) एक - एक श्रेष्ठ मणिरत्न ( कलश में) डाल दिया गया । ( 11 ) वह (कलश) पूर्ण कर दिया गया ( ऐसा करके, (वे) (यात्रा पर ) प्रवृत्त हुए । तीर्थ में स्नान करके (वे सब ) अपने घर को पहुँचे । ( 12 ) तब ( किसी ) उत्सव के दिन पर पत्नी के द्वारा कहा गया ( कि) हे नाथ! आज ( पहले रखा हुआ ) रुपया भोग किया जाए। (13) संखिणी ( वहाँ ) खोदता है जहाँ पर कलश रखा गया था, तब
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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