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भरा। (5) गौ-समूहों द्वारा थणों से दूध बिखेरा गया। आते-जाते हुए पथिकों के कारण मार्ग रुक गया। (6) तब (जन्म के) छठे दिन पर वणिक के द्वारा उत्कृष्ट रूप से झटपट उत्सव दिखलाया गया (मनाया गया)। (7-8) जब शीघ्र आठ और दो दिन (=दस दिन) व्यतीत हुए, तब जिनदासी नामक (माता ने) अनुराग-सहित (उस) सुकुमार (और) इन्द्र के समान देहवाले बालक को लेकर (और) भक्तिपूर्वक जिन-मन्दिर जाकर (जिनेन्द्र को प्रणाम किया)। (9) (वहाँ) उसके द्वारा मुणिचन्द देखे गए (और) (वे) पूछे गए। यह छन्द नाम से मत्तमात्तंग (है)।
घत्ता - जिस प्रकार मेरु-पर्वत स्थिर है उसी प्रकार ज्ञानियों द्वारा कुम्भ राशि कही जाती है। हे मुनिवर! ऐसा जानकर मेरे पुत्र का नाम रचा जाए। .
3.6
(1) उसको (माता के वचन को) सुनकर (वे) विशिष्ट मुनि (जिनके द्वारा) काम नष्ट कर दिया गया (है), (जिनका) स्वर मेघ के समान (है) बोले- (2) हे पुत्री! तुम्हारे द्वारा स्वप्न के अन्दर श्रेष्ठ, ऊँचा (और) सुन्दर पर्वत देखा गया। (3) अतः (इसका) नाम सुदर्शन रखा जाए (जो) सज्जन और कामिनियों के कानों के लिए मनोहर है। (4) तब जिनदासी मन में आनन्दित हुई और विशिष्ट मुनि को प्रणाम करके स्वनिवास को गई। (5) शीघ्र (शुभ) दिन (और) शुभमास में दिव्य (और) अत्यन्त सुन्दर पालना बाँधा गया। (6-7-8) वहाँ रहा हुआ बालक बढ़ने लगा, जैसे देव-बालक देव-पर्वत (सुमेरु) पर (बढ़ता है), जैसे व्रतपालन से धर्म बढ़ता है, जैसे स्नेही के दर्शन से प्रेम बढ़ता है, जैसे नई वर्षा ऋतु में कन्द (बादल) बढ़ता है, इस प्रकार दोधक छन्द व्यक्त किया गया (है)।
घत्ता - जिस प्रकार समुद्र और जग के अन्धकार को दूर करनेवाला चन्द्रमा बढ़ता हुआ अच्छा लगता है, (उसी प्रकार) सज्जनों के मन को अच्छा लगनेवाला (जिनदासी का) दुर्लभ (पुत्र) पुरुदेव (ऋषभदेव) के सुत (भरत) के समान (अच्छा लगता है)।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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