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अव्यय
किन्तु
णिवसिउ
ठहरे हुए
(णिवस-णिवसिअ) भूकृ 1/1 [(अवुह-अवहु) वि-(यण) 7/1]
अवुहयणे
मूर्खजन में
27.15
-- TEE
अव्यय
तब
तिण्णि
तीनों
चवन्ताइँ
(ति) 1/2 वि अव्यय अव्यय (चव-चवन्त) वकृ 1/2 (उम्माहअ) 2/1 'अ' स्वार्थिक (जण) 6/1 (जण-जणन्त) वकृ 1/2
उम्माहउ
इस प्रकार से कहते हुए अतिपीड़ा को जन (समूह) में उत्पन्न करते हुए
जणहो' जणन्ताइँ
2.
दिण-पच्छिम-पहरे
विणिग्गयाइँ-विणिग्गयाई
कुञ्जर
[(दिण)-(पच्छिम) वि-(पहर) 7/1] (विण्णिग्गय) भूक 1/2 अनि (कुञ्जर) 1/1 अव्यय [(विउल) वि-(वण) 6/1] (गय) भूकृ 1/2 अनि
दिन के अन्तिम-प्रहर में बाहर निकल गए हाथी की तरह घने वन को चले गए
इव
विउल-वणहो गयाइँ गयाई
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) मात्रा को हस्व करने के लिए यहाँ अनुस्वार के स्थान पर " ' लगाया गया है। (हेम प्राकृत व्याकरण 4-410) कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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