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दावाग्नि
दवग्गि वणन्तरे
पसरइ
(दवग्गि) 1/1 [(वण)+ (अन्तरे)] [(वण)-(अन्तर) 7/1] (पसर) व 3/1 अक [(मेह)-(जाल) 1/1] अव्यय (अम्वर) 7/1
मेह-जालु
जंगल के अन्दर फैलता है (फैला है) बादलों का समूह उसी प्रकार आकाश में
तिह अम्वरें
तडि
तडयडइ
पडइ
धणु
गज्ज
(तडि) 1/1 (तडयड) व 3/1 अक (पड) व 3/1 अक (धण) 1/1 (गज्ज) व 3/1 अक (जाणई) 6/1 (राम) 6/1 (सरण) 2/1 (पवज्ज) व 3/1 सक
बिजली (ने) तड़तड़ करती है (किया) पड़ती है (पड़ी) बादल गरजता है (गरजा) जानकी (की) राम की शरण में (को) जाती है (गई)
जाणइ
रामों
सरणु'
पवज्ज
9.
अमर-महाधणु-गहिय-करु
[(अमर)-(महा) वि-(धणु)(गहिय) भूकृ- (कर) 1/1]
इन्द्रधनुष को, पकड़े हुए, हाथ मेघरूपी हाथी पर
मेह-गइन्दे चडेवि
चढ़कर
जस-लुद्धउ
यश का इच्छुक
[(मेह)-(गइन्द) 7/1] (चड+एवि) संकृ [(जस)-(लुद्धअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक] अव्यय [(गिम्भ)-(णराहिव) 6/1] [(पाउस)-(राअ) 1/1] अव्यय
ऊपर ग्रीष्मराजा के
उप्पर गिम्भ-णराहिवहो पाउस-राउ णाइँ=णाई
पावसराजा
मानो
'गमन' अर्थ में द्वितीया का प्रयोग होता है।
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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