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9.
वरि
पहरिउ
वरि
किउ
तवचरणु
वरि
विसु
हालाहलु
वरि
मरणु
वरि
अच्छिउ
गम्पिणु'
गुहिल-वणे
णवि
विि
1.
अपभ्रंश काव्य सौरभ
पाठ
पउमचरिउ
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सन्धि
G
-
3
27
27.14
अव्यय
(पहर - पहरिअ) भूकृ 1 / 1
अव्यय
( कि - किअ) भूकू 1/1
[(तव) - (चरण) 1 / 1]
अव्यय
(farm) 1/1
( हालाहलु ) 1/1
अव्यय
( मरण) 1 / 1
अव्यय
(अच्छ· अच्छिअ) भूकृ 1 / 1 [गम+एप्पिणु= गमेप्पिणु - गम्पिणु ] संकृ
[(गुहिल) वि - ( वण) 7 / 1]
अव्यय
अव्यय
अधिक अच्छा
प्रहार किया गया
अधिक अच्छा
किया गया
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तप का आचरण
अधिक अच्छा
विष
गम् में सम्बन्धक—कृदन्त अर्थक प्रत्यय 'एप्पिणु' और 'एप्पि' को लगाने पर आदिस्वर 'एकार' का विकल्प से लोप होता है। यहाँ बनना चाहिए 'गमेप्पिणु' पर 'गम्पिणु' प्रयोग पाया जाता है। ( हेम प्राकृत व्याकरण, 4-442 )
हालाहल
अधिक अच्छा
मरना
अधिक अच्छा टिके हुए
जाकर
गहन वन में
नहीं
पल भर
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