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विद्दाणउ
(विद्दाणअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक
निस्तेज (म्लान)
णिसुणेवि बलेण
उसको सुनकर . बलदेव के द्वारा कहा गया भरत के लिए (को). सम्पूर्ण
पजम्पिउ
(त) 2/1 स (णिसुण+एवि) संकृ (बल) 3/1 (पजम्प-पजम्पिअ) भूक 1/1 (भरह) 4/1 (सयल) 1/1 वि अव्यय (रज्ज) 1/1 (समप्प-समप्पिअ) भूकृ 1/1
भरहहो सयलु
वि
राज्य दे दिया गया है
समप्पिउ
जामि
जाता हूँ हे माँ
माए
दिढ
मन की अवस्था में
हियवए होज्जहि
रहना
(जा) व 1/1 सक (माआ) 8/1 (दिढ) 1/1 वि [(हिय)-(वअ) 7/1] (हो) विधि 2/1 अक (ज) 1/1 सवि (दुम्मिय) भूकृ 1/1 अनि (त) 2/1 स (सव्व) 2/1 सवि (खम) विधि 2/1 सक
दुम्मिय
कष्ट पहुँचाया गया
उस
सबको
सव्वु खमेज्जहि
क्षमा करना
अव्यय
जिस तरह से पूछी गयी
आउच्छिय
(आउच्छ-आउच्छिया) भूकृ 1/1 (माया) 1/1
माय
माता
हा-हा
अव्यय
शोकार्थक
(पुत्त) 8/1
हाय पुत्र
1.
वअ-पअ-पद = स्थान, अवस्था
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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