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पाठ - 2 पउमचरिउ
सन्धि - 24
गए वण-वासहो
रामे
उज्झ
नहीं
चित्तहो
भावई
(गअ) भूकृ 7/1 अनि
जाने पर [(वण)-(वास) 6/1]
वनवास को (राम) 7/1
राम के (उज्झ) 1/1
अयोध्या अव्यय (चित्त) 4/1
चित्त के लिए (को) (भाव) व 3/1 सक
अच्छी लगती है (थिया) भूकृ 1/1 अनि
स्थित (णीसास) 2/1
श्वास (मुअ-मुअन्त- (स्त्री) मुअन्ती) वकृ 1/1छोड़ती हुई (मही) 1/1
पृथ्वी (उण्हाला-अ) 7/1 'अ' स्वा. ग्रीष्मकाल में
जैसे
थिय
णीसास
मुअन्ति महि
उण्हालए
णाव
अव्यय
24.1
सयलु
(सयल) 1/1 वि अव्यय (जण) 1/1
समस्त भी
जणु
जन-(समूह)
1. 2.
कभी-कभी षष्ठी का प्रयोग द्वितीया के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) रुच् (अच्छा लगना) अर्थ की धातुओं के साथ चतुर्थी का प्रयोग किया जाता है।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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