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वर-उज्जाणइँ
अव्यय [(वर) वि-(उज्जाण) 2/2] (माण) विधि 2/1 सक
श्रेष्ठ उद्यानों को
माणहि
मान
अव्यय
आज
अज्जु वि
अव्यय (अङ्ग) 2/1 [(स) वि-(इच्छा ) 3/1] (मण्ड) विधि 2/1 सक
शरीर को स्व-इच्छा से
स-इच्छए मण्डहि
सजा
अज्ज
अव्यय
आज
वि
ही
वर-विलयउ
अव्यय [(वर) वि-(विलया) 2/2] (अवरुण्ड) विधि 2/1 सक
श्रेष्ठ स्त्रियों को (का) आलिंगन कर
अवरुण्डहि
अज्ज
अव्यय
आज
भी
जोग्गउ सव्वाहरणहो
अव्यय (जोग्गउ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक [(सव्व)+(आहरणहो)] [(सव्व) वि-(आहरण) 6/1] अव्यय
योग्य सभी अलंकार के
अज्ज
आज
वि
अव्यय
कवणु
कौनसा
कालु
(कवण) 1/1 स (काल) 1/1 [(तव)-(चरण) 6/1]
समय
तप के आचरण का
तव-चरणहो 6. जिण-पव्वज्ज
जिन-प्रव्रज्या होती है
होइ
अइ-दुसहिय
[(जिण)-(पव्वज्जा) 1/1] (हो) व 3/1 अक [(अइ) वि-(दुसह-दुसहिया) भूकृ 1/1] (क) 3/1 स
बहुत असह्य किसके द्वारा
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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