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पासु
पास
छण-ससि
व
.
(पास) 2/1 [(छण)= (ससि) 1/1] अव्यय [(णिरन्तर)+(धवलिय)+(आसु)] [[(णिरन्तर) वि- (धवलिय) भूकृ - (आस) 1/1 वि]
शरद की पूर्णिमा के चन्द्रमा की तरह निरन्तर सफेद किया गया
णिरन्तर-धवलियासु
मुख
गय-दन्तु अयंगमु दंड-पाणि अणियच्छिय-पहु पक्खलिय-वाणि
[(गय) भूकृ अनि - (दन्त) 1/1] वि] दन्त (-समूह) टूट गया (अयंगम) 1/1 वि [[(दंड)-(पाणि) 1/1 वि] हाथ में लकड़ी (वाला) [(अणियच्छिय) भूक - (पह) 1/1 वि] न देखा गया (अदृष्ट)-पथ [(पक्खलिय) भूक - (वाणी) 1/1 वि] लड़खड़ाती हुई वाणी
(वाला)
गरहिउ दसरहेण पइँ
कञ्चुइ
काइँ चिराविउ जलु जिण-वयणु
(गरह) भूकृ 1/1 (दसरह) 3/1 (तुम्ह) 3/1 स (कञ्चुइ) 8/1 अव्यय (चिराव) भूकृ 1/1 (जल) 1/1 [(जिण)-(वयण) 1/1] अव्यय (सुप्पहा) 6/1 अव्यय
निन्दा किया गया दशरथ के द्वारा तुम्हारे द्वारा हे कञ्चुकी क्यों देर की गयी गन्धोदक जिन-वचन के सदृश सुप्रभा के द्वारा शीघ्र
जिह
सुप्पहहे दवत्ति
अव्यय
नहीं
पाविउ
..
(पाव) भूकृ 1/1
पाया गया
1.
कभी-कभी तृतीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग किया जाता है। (हे. प्रा. व्या. 3-134)
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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