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हैं। (8) ( और भी) सिंह के समान गर्दनवाले ( तुम्हारे ) (भाई) कर की राशि भी नहीं देते हैं, किन्तु (वे ) ( इस प्रकार ) बिना मूल्य के ही पृथ्वी को भोगते हैं । ( 9 ) जिस ( उपर्युक्त ) कारण (-समूह ) से ही वे आज भी ( सिद्ध नहीं हैं ) जीते नहीं जाते हैं, उस कारण ( - समूह ) से ही चक्र नगर में प्रवेश नहीं करता है।
16.7
(1) मनुष्यों के मन को हरनेवाला दूत (उन) राजपुत्रों के घर गया । ( वह घर) वृक्ष - समूह से ( निर्मित) सुन्दर तोरणवाला ( था ), घोड़े और हाथीवाला ( था ) और बाँटी हुई जमीन के भागवाला ( भाग में स्थित ) ( था ) | ( 2 ) श्रेष्ठ स्वामी के पुत्रों को प्रणाम करके (और) (उनके प्रति ) विनय करके उनके द्वारा ( दूत के द्वारा ) वे कहे गये । ( 3 ) ( दूत ने कहा ) तुम (सब) नरनाथ ( राजा भरत ) की (ऐसी) सेवा निश्चय ही करो (जो ) देवताओं, मनुष्यों और धार्मिक ( - जन ) (में) भय को उत्पन्न करनेवाली (हो), (4) (तुम) (सब) (उनको ) प्रणाम करो। बहुत प्रलाप ( बकवास ) से क्या लाभ ( है ) ? मिथ्या गर्व से पृथ्वी प्राप्त नहीं की जाती है । (5) उसको सुनकर कुमारगण ने कहा- यदि ( किसी के) व्याधि नहीं देखी जाती है तो (हम) ( उसको) प्रणाम करते हैं । ( 6 ) यदि (किसी का) शरीर अत्यन्त पवित्र ( है ) तो (हम) ( उसको) प्रणाम करते हैं । यदि (किसी का) जीवन सुन्दर ( है ) तो (हम) ( उसको) प्रणाम करते हैं । ( 7 ) जो न जीर्ण होता है (न) क्षीण होता है तो (हम) ( उसको) प्रणाम करते हैं । यदि कोई अपनी पीठ भग्न नहीं करता तो हम उसको प्रणाम करते हैं। (8) यदि (किसी का) बल कम नहीं होता है तो (हम) (उसको ) प्रणाम करते हैं । यदि (किसी की ) पवित्रता नष्ट नहीं होती है तो (हम) (उसको) प्रणाम करते हैं । ( 9 ) यदि (किसी का) प्रेम खण्डित नहीं होता है तो (हम) ( उसको) प्रणाम करते हैं । यदि (किसी की ) उम्र क्षीण नहीं होती है तो (हम) ( उसको) प्रणाम करते हैं । ( 10 ) यदि (किसी के) गले में यम का फन्दा नहीं चिपका है तो (हम) (उसको ) ( प्रणाम करते हैं), यदि किसी का वैभव नहीं घटता है तो (हम) (उसको) प्रणाम करते हैं ।
घत्ता यदि (कोई) जन्म- जरा और मरण का हरण करता है, (यदि ) (कोई) चार गति के दुःख को दूर (नष्ट) करता है, यदि (कोई) संसार से पार लगाता है, तो (हम) उस राजा को प्रणाम करते हैं ।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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