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है। (वह) अंग को नहीं खींचता है (किन्तु) तलवारों को खींचता है। (8) हे देव! भाई तुम्हें पोदनपुर नहीं देगा। किन्तु (मैं) जानता हूँ (वह) (तुम्हें) रणरूपी भोजन देगा। (9) (वह) रत्नों और हाथीरूपी रत्नों को (तुमको) भेंट नहीं करेगा। (वह) निश्चितरूप से मनुष्य के छातीरूपी रत्नों को भेंट करेगा।
घत्ता - (वह) वंश, कुलाचार, गुरु के द्वारा कथित क्षत्रियधर्म को नहीं समझता है। (वह) मर्यादारहित, ईर्ष्यालु, समानगोत्रीय (भाई) अवश्य ही युद्ध करेगा।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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