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महाराज अशोक और जैनधर्म
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डा० कर्न के शब्दों में अशोक ने जिस अहिंसा को ३. असधिमित्रा-प्रशोक की रानी जैनधर्मी थी। अपनाया और जिम पहिसा का प्रचार किया, वह बौद्ध उसके पिता श्रेष्ठ विदिशा (म.प्र.) के नगर सेठ पौर सिद्धान्तो के नही बतिक जैन धर्म के अनुसार है । डा० सुदृढ़ जैनधर्मी थे । इतिहास-रत्न डा. ज्योतिप्रसाद बल्हर का भी कहना है कि जैनियों के समान हस्पताल (भारतीय इतिहास एक दृष्टि पृ० ६४) के शब्दो मे, इस खोल कर और हर प्रकार की जीव हत्या रोकने की जैन रानी से राजकुमार कुणाल पैदा हुआ । 'विदिशाघोषणा प्रादि करने से प्रशोक सुदृढ जैनधर्मी सिद्ध वैभव' में अशोक और उसकी रानी असघिमित्रा का वर होता है"।
और वधू के भेष मे इकट्टा एक चित्र भी दे रखा है। इस प्रकार शोक का राज्य वास्तव मे जैन राज्य था ४. पपक-अशोक के सगे भ्राता थे जो जैन मनि और वह अपने अन्तिम स्तम्भ लेख लिखवाने तक अवश्य हो गये थे । बौद्ध लेखक तारानाथ ने इन्डियन हिस्टोरिकल दिल से जैनधर्मी था।
क्वाटरली भाग ६ पृ० ३३५ के अनुसार पद्मक को निर्ग्रन्थ प्रशोक का कुल धर्म :
(जैन मुनि पिगल) का उपासक स्वीकार किया है। १. चन्द्रगुप्त (३१७-३६८ ई.) मौर्य वंश के ५. विशोक-प्रशोक का एक और भाई था। यह भी संस्थापक और अशोक के पितामह थे, जो स्मिथ के शब्दो जैनधर्मी था। यह जैन तीर्थों की यात्रा करने और उनकी मे जैन गुरु अन्तिम श्रुत केवली भद्रबाहु के शिष्य थे और उन्नति तथा जीर्णोद्धार के लिए दान देने मे इतना प्रसिद्ध जिसने जैन मुनि होकर जैनधर्म का प्रचार किया। अनेक था कि वीर (मेरठ, वर्ष पृ० २५७) के अनुसार सप्रसिद्ध और प्रामाणिक ऐतिहामिक ग्रन्थ इस सत्य की दिव्यावदान' नामक ग्रन्थ में उसे तीर्थ-भक्त लिखा है। पुष्टि करते है।
६. कुणाल-अशोक का पुत्र और उसके राज्य का २. बिनुसार (२९८-२७४)- अशोक के पिता थे अधिकारा जैनधर्मी था। जिनके जैनधर्मी होने में विद्वानो को न पहले कोई गका ७ सम्प्रति- प्रशोक का पौत्र और कृणाल का पुत्र थी और न अब है। इन्होने अनेक जैन मन्दिर बनवाये था। पिछले जन्म मे यह अत्यन्त निधन और रोगी था। तथा मिस्र, सीरिया, यूनान आदि विदेशों के गजदून एक जैन मुनि के उपदेश से वह जैन मनि हो गया था इनकी राजसभा में अनेक प्रकार की भेट लेकर पाते जिसके पुण्य फल से वह इस जन्म में इतना प्रसिद्ध और थे, जैनधर्म का प्रचार किया।
प्रतापी सम्राट हुया कि समूचे भारत का अधिकारी बना।
27. Asoka professed and preached Ahinsa for
the good of men and beasts alike. His Royal Instructions are a kin to the idea of Ahinsa in Jainism, nothing of Buddhist Spirit His Ordinances concerning the sparing of animal life agree much more closely with the ideas of the heretical Jain as than those of the Buddhists. -Dr. Kern, Manual of Indian Buddh
ists. 28. Dr. Bulber also remarked that like Jain,
Asoka opened Hospitals even for animal life" and proclaimed "Amari-Ghosh" (Not to Kill). In fact Asoka was an ideal Jaina King and an ardent follower of the faith like a IRUE JAINA -Indian antiquary. Vol 1111874) pp. 71-80.
29 Chandra Gupta was Jain and disciple of
Jain Acharya Bhadr a Bahu. He became
Jain monk under his influence : (a) Smith's Early History of India (Revised
Edn.) P. 154. (b) Epigraphia Indica, Vol. II Introd. PP.
36-40. (c) Journal of Royal Asiatic Sociely, Vol. I,
P.176. (d) Cambridge History of India, Vol. 1, P.
484. (e) Journal of Mythetic Society, Vol. XVII,
P 272. (1) Indian antiquary, Vol XVII, P.272. (8) Journal of Bihar & Orissa Research
Society Vol. XIII P. 24.