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महावीर के विदेशी समकालीन
डा० भगवतशरण उपाध्याय, उज्जैन
थे, कर्मों के फल, ग्रात्मा, पुनर्जन्म को अस्वीकार करते थे । पकुध भौतिक जगत् सुख-दुख आदि का रचयिता किसी को नहीं मानते थे और न ही वध, हत्या, पीड़ा श्रादि मे कोई दोष मानते थे । संजय संदेहवादी दर्शन के प्रवक्ता थे और मक्खलि श्राजीवक संप्रदाय के प्रर्वतक थे जो अन्त मे महावीर के शिष्य हो गए थे। इनके अतिरिक्त दो और दार्शनिक उस काल में अपने सघ लिए लोगों को उपदेश भारत में यह युग उपनिषदों का था, जिन्होंने वेदों के दिया करते थे - प्रालार कालाम और उद्दक ( रुद्रक) बहुदेववाद से विद्रोह कर 'ब्रह्म' की प्रतिष्ठा की, चितन रामपुत्त दोनो बुद्ध के गुरु रह चुके थे। इनके श्राश्रमों को हिंसात्मक यज्ञों से ऊपर रखा, ब्राह्मणों के मे को प्रभुत्व कुछ काल रह कर बुद्धत्व प्राप्त करने से पहले गौतम तिरस्कृत कर क्षत्रियो को सत्ता दर्शन के क्षेत्र में स्थापित ने ज्ञानार्जन किया था, पर वहाँ अपने प्रश्नो के सही उत्तर की। उस काल मे सत्य की खोज में विचारो का संघर्ष करते न पा उनसे विरक्त होकर वे राजगिरि की ओर जा पहाअनेक साधु, प्राचार्य और परिव्राजक अपने-अपने शिष्य - ड़ियाँ लांघ गया पहुचे थे और वहा उन्होंने सम्यक् सम्बोधि सघ लिए देश मे फिरा करते और तर्क तथा प्रज्ञा से सत्य प्राप्त की थी । को परखते । ये प्रायः सभी विचारक दार्शनिक - कम से कम महावीर और बुद्ध के समकालीन - अनीश्वरवादी अध्यात्मवादी थे । इनमें अग्रणी महावीर और बुद्ध थे जो क्षत्रिय और अभिजात थे और अश्वपति कैकेय, प्रवहण जैवलि, प्रजात शत्रु काशेय और जनक विदेह की राजपरम्परा में विचारों के प्रवर्तक हुए। इन्होने उपनिपदो के 'ब्रह्म' को भी छोड़ दिया, आत्मा को भी और वैचारिक विद्रोह को आगे बढ़ाया ।
महावीर के समसामयिकों, स्वदेशी चितकों में बुद्ध थे, जिनके विचारों का देश-विदेश मे सर्वत्र घना प्रचार हुआ । इनके अतिरिक्त पाँच अन्य दार्शनिको के नाम तत्कालीन साहित्य ने बचा रखे है-ये थे पुराण कश्यप, अजित केश-कम्बलिन्, पकुच कात्यायन, सजय बेलट्ठपुत्त, और मक्खलि गोसाल । पुराण कश्यप, पापपुण्य मे भेद नहीं मानते थे, न उनकी सम्भावना ही स्वीकार करते थे । अजित, जो केशो का कम्बल धारण करते
ईसा पूर्व छठी सदी, जिसमें तीर्थङ्कर महावीर का जन्म हुआ था (५६६-२७ ), संसार के इतिहास में असाधारण उथल-पुथल की सदी थी। सारे संसार मे तब चिंतन के क्षेत्र में विद्रोह हो रहा था और नये विचार प्रतिष्ठित किए जा रहे थे, नये दर्शन रचे- परिभाषित किये जा रहे थे । भारत, चीन, ईरान, इस्रायल - सर्वत्र नये विचारो की धुन लगी थी ।
चीन मे उसके इतिहास का क्लासिकल काल - चुन. चिउ का सामन्ती युग - प्राय ७२२ ई० पू० ही जन्म ले चुका था और राजनीति अब सस्कृति की श्रोर नेतृत्व के लिए देख रही थी। नेतृत्व दर्शन और धर्म ने दिया भी उसे । महावीर के प्रायः जीवन काल में ही, छठी सदी ई० पू० में, चीन के विशाल देश मे तीन महापुरुष जन्मेकन्फ्यूशस (ल० ५५१-४७९ ई० पू० ), लामो-रजू (ल० ५६० ई० पू० ) और मोत्ज् ( ल० ५००.४२० ई० पू० ) लाम्रो-त्जू तो सम्भवतः ऐतिहासिक व्यक्ति न था पर उसका ऐश्वयं पर्याप्त फला-फूला। शेष दोनों धार्मिकदार्शनिक नेता अभिजात कुलो के थे, महावीर और बुद्ध की ही भाँति । कन्फ्यूनस लू राज्य का रहने वाला था और सुरंग राजकुल की एक शाखा में जन्मा था । उसके पूर्वज वस्तुतः शाग सम्राटों के वंशज थे जो कालान्तर में लू राज्य में जा बसे थे । कन्फ्यूशस का दर्शन तस्वत. राजनीतिक था । उसका चिन्तन यद्यपि प्रतिक्रियावादी थ