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पुस्तक-समीक्षा
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इम सकलन में विभिन्न लेखको की विचार-धारायें का योगदान -लेखक-डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल । तथा शलिया दरिटगोचर होती है। कई स्थानो पर पाठक प्रकाशक-श्रीलाल पारमाथिक टस्ट फड. रेनवाल (किशनविचारो की पुनरुक्ति, वैचारिक द्वन्द्व या अन्तविरोध में गढ), राजस्थान । उलझ जाता है।
साभर (शाकम्भरी) प्रदेश जैन धर्म, साहित्य एवं मद्रण तथा साज-सज्जा की दृष्टि से ग्रन्थ सुन्दर है। पुरातत्त्व की दृष्टि से गरिमापूर्ण रहा है। प्रस्तुत पुस्तक मूल्य कुछ अधिक प्रतीत होता है।।
मे इसी प्रदेश के सास्कृतिक गौरव का प्रतिपादन किया महाकवि दौलतराम कासलीवाल; व्यक्तित्व एवं गया है। इसके प्रथम अध्याय में प्रदेश के प्रमुख सास्कृकृतित्व-लेखक-डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल । प्रका- तिक नगरो का, द्वितीय अध्याय में भट्टारक-परम्परा, शक-श्री सोहनलाल सोगाणी, मत्री-प्र० का०, दि० शास्त्र भण्डारी, जन सन्तो तथा उनके काव्य का, तृतीय जैन अ. क्षेत्र श्री महावीर जी, महावीर-भवन, जयपुर। अध्याय में प्रसिद्ध जैन मन्दिरो का तथा चतुर्थ अध्याय में पृष्ठ स० -११०३१० मूल्य-१० रुपये।
प्रदेश की वर्तमान स्थिति का शोधणं अनुशीलन किया डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल (अध्यक्ष, साहित्य-शोध गया है। विभाग, श्री दि० जैन अ० क्षेत्र श्री महावीर जी, जय
__अजमेर से रणथम्भौर के किले तक विस्तृत इम प्रदेश पुर) की यह अमूल्य कृति 'महावीर-ग्रंथमाला' को १७वें
का ऐतिहासिक महत्त्व शोध का विषय है। विद्वान् सम्पापुष्प के रूप में प्रकाशित हुई है। कौन-मा जैन-धर्म-जिज्ञामु
दक ने शोधपूर्ण प्रस्तावना लिख कर पुस्तक को अधिक प० दौलतगम जी के नाम से अपरिचित होगा? बसवा
प्रामाणिक बनाया है। विद्वद प० टोडरमल जी से निवामी तथा जयपुर-राज्य की सेवा मे रत, १८वी गती
सम्बद्ध इस प्रदेश का खोजपूर्ण चित्रण करके लेखक ने एक ई० के उत्तरार्ध में उत्पन्न, ५० दौलतराम कासलीवाल
बड़े अभाव की पूर्ति की है। पुस्तक पठनीय है। जैन मस्कृति-पुराणों के प्रथम भाषा-गद्य-बचनिकाकार हुए है। प्राजल एवं प्रवाहपूर्ण गद्य के रचयिता प० दौलतराम
पंप यग के जैन कवि-लेखक-पं० के० भुजबली. जी के मुख्य ग्रथ है-जीवधर-स्वामि-चरित, विवेक-विलास,
शास्त्री, मूडबिद्री। सम्पादक एव प्रकाशक-५० वर्धमान, अध्यात्म-बारहखडी, श्रीपाल-चरित, पद्मपुराण (भाषा),
पार्श्वनाथ शास्त्री, मन्त्री प्राचार्य कथुमागर-ग्रथमाला, हरिवशपुराण (भाषा), परमात्म प्रकाश (भाषा टीका)
कल्याण-भवन, सोलापुर-२ । पृष्ठ स० १६० । एवं आदि पूराण । आधुनिक हिन्दी-गद्य के प्रारम्भिक ममीक्ष्य पुस्तक मे महाकवि पम्प तथा उनके यूग के विकाम मे पण्डित जी का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। अनेक कवियो (पोन, रन, चामुण्डगय, श्रीधराचार्य, ___ ऐसे महान् साहित्यकार के विषय मे शोधपूर्ण कृति
दिवाकरनन्दी, शान्तिनाथ, नागचन्द्र, कन्ति, नयसेन प्रादि) देकर डा० कासलीवाल जी ने एक महान् प्रभाव की पूर्ति
के जीवन एवं कृतित्व का परिचय दिया गया है । कन्नड
एवं संस्कृत साहित्य में महाकवि पम्प का नाम इतना की है। राजस्थानी सन्तों, कवियो एवं ग्रथकारो के महान
अधिक महत्वपूर्ण है कि वह युग-प्रवर्तक कवि माने जाने अध्येता तथा अनेक शोधपूर्ण ग्रंथो के प्रणेता डा. कासली
लगे। 'प्रादिपुराण' तथा 'विक्रमार्जन-विजय' नामक दो वाल जी का यह प्रयास अत्यन्त सराहनीय है।
ग्रन्थ संस्कृत-साहित्य की अमूल्य निधि है। विद्वान् लेखक १०३ पृष्ठो की विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावना मे विद्वान
ने पम्प तथा अन्य कवियों का मूल्याकन करके एक प्रशंसलेखक ने महाकवि दौलतराम जी के व्यक्तित्व एव कृतित्व की शोधपूर्ण विवेचना की है। इसके अतिरिक्त दो कतियो नीय प्रयास किया है। पुस्तक पाठको के लिए उपयोगी
तथा ज्ञानवर्धक है। का पूर्ण पाठ तथा छ ग्रथो पाशिक पाठ देकर प्रथ को त अधिक उपयोगी बनाया गया है। पुस्तक संग्रहणीय है। हिन्दी की प्रावि और मध्यकालीन फाग-कृतियां
शाकम्भरी प्रदेश के सांस्कृतिक विकास में जैन धर्म लेखक-डा. गोविन्द रजनीश । प्रकाशक-मंगल-प्रका