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२५६, वर्ष २८, कि० १
अनेकान्त
हात गोविन्द राजियो का रास्ता. जयपर-। पष्ठ सं० जैन धर्म का मौलिक इतिहास (द्वितीय भाग)-- २७५ । मूल्य-२८ रुपये।
लेखक-प्राचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज । प्रकाशकडा. गोविन्द रजनीश के इस शोध-प्रबन्ध में हिन्दी जैन इतिहास-समिति, जयपुर । पुष्ठ सं०-८६३, मूल्य की प्रादि और मध्यकालीन फागु-कृतियो का पालोचना. ४० रुपया। त्मक अध्ययन किया गया। भूमिका-भाग मे फागु-काव्य प्रस्तुत ग्रन्थ के द्वितीय खण्ड मे केवली एवं पूर्वधर के परिवेश, परम्परा एव प्रवृत्तियों का विश्लेषण करके मनियो-इन्द्रभति गौतम, आर्य सुधर्मा, प्रार्य जम्बू, हिन्दी की प्रादिकालीन फागु-कृतियो का काव्य-शास्त्रीय प्राचार्य प्रभव स्वामी, प्राचार्य श्री भद्रबाहु, प्रार्य स्थूलएवं छन्दःशास्त्रीय मूल्याकन किया गया है। मूल भाग भद्र, प्रार्य सुहस्ती, वाचनाचार्य, देवद्धि क्षमाश्रमण आदिमे विभिन्न फागु-कृतियो का परिचय देकर उनका प्रवि- के जीवन एव कृतित्व का विवेचन किया गया है । पुस्तक कल पाठ दिया गया है।
पर्याप्त श्रम से तैयार की गई है। इसमे यथासम्भव प्रस्तुत ग्रन्थ से पाठकों को फाग-कृतियों का विशिष्ट श्वेताम्बर एवं दिगम्बर आम्नायों के साधन-स्रोतो का परिचय प्राप्त होता है । फागु-कृतियों में प्राध्यात्मिक तत्त्व उपयोग करके इसे शोध-दृष्टि से परिपूर्ण बनाया गया है। के अतिरिक्त काव्यगत मनोरजन भी प्राप्त होता है । लेखक की शैली रोचक एवं खोजपूर्ण है। द्वादशांग एक ग्रथ में इतनी फागु कृतियो का समावेश जिज्ञासु का परिचय जैन साहित्य के जिज्ञासु पाठको के लिए पाठको के लिए हितकर है।
उपयोगी सिद्ध होगा, ऐसी प्रागा है। मुद्रण तथा साजछपाई एवं साज-सज्जा की दप्टि में भी पुस्तक
सज्जा की दृष्टि से प्रस्तुत ग्रन्थ सुन्दर है। प्रस्तुत ग्रन्य
सग्रहणीय हे। सुन्दर बन पड़ी है।
फडामण्टल्स माफ जैनिज्म (अग्रेजी)-लेखकतीर्थकर वर्धमान महावीर-लेखक प० पद्म चन्द्र
वरिस्टर श्री चम्पतराय जैन, प्रकाशक-वीर-निर्वाणशास्त्री, प्रकाशक-श्री वीर निर्वाण-ग्रन्थ-प्रकाशन समिति,
भारती, ६६, तारगर.न स्ट्रीट, मेरठ (उ. प्र.)। पृष्ठ इन्दौर पृष्ठ--११५, मूल्य-पाठ रुपए।
सख्या १२१, मूल्य आठ रुपए । परम पूज्य उपाध्याय मुनि श्री विद्यानन्द जी की
विदशा म जन-धम-प्रचार के क्षेत्र मे बैरिस्टर श्रा प्रेरणा से लिखित, उपयुक्त ग्रन्थ मे भगवान् महावीर के
चम्पतराय जन का योग-दान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है । जीवन सम्बन्धी तथ्यों को सप्रमाण प्रस्तुत किया गया है।
उनकी महत्त्वपूण पुस्तक 'दि प्रक्टिकल पाथ' का सशाचित प्रारम्भ मे लेखक ने विविध उद्धरणो द्वारा जैन धर्म की
सस्करण प्रकाशित करके वीर-निर्वाण-भारती ने स्तुत्य प्राचीनता प्रतिपादित की है। विभिन्न ग्रन्थो से उद्धरण
प्रयास किया है । आलोच्य पुस्तक में लेखक न दशनशास्त्र देकर लेखक ने महावीर-जीवन-चरित को प्रामाणिक
की एक मुख्य विधि अनकान्तवाद का विश्लषण करक बनाने का प्रयास किया है। यद्यपि लेखक की दृष्टि एव ओली पौराणिक रही है, तथापि शोधार्थी पाठको के लिए
सप्त तत्वो, कर्म-स्वभाव आदि का युक्तियुक्त विवेचन भी इसमे यत्र-तत्र शोध-कण बिखरे हुए है। 'मनसुख
किया है । इसके अतिरिक्त साधना की अवस्थानो---गुणसागर' नामक काव्य-ग्रन्थ से उद्धरण देकर पुस्तक को
स्थानो की विशद व्याख्या की गई है और घम का व्यावरोचक बनाया गया है। ६२ श्लोको से युक्त देशना
हारिक रूप प्रतिपादित किया गया है। मन्त म जैनधर्म मानवोमिटानोकान को तुलनात्मक प्राचीनता सिद्ध करके लखक ने इसे अधिक लेखक ने इसे अधिक उपयोगी बनाया है।
प्रामाणिक बनाया है। भगवान महावीर के भव्य चित्र से सुसज्जित यह धर्म-जिज्ञासु पाठकों के लिए यह पुस्तक प्रवासी पस्तक पाठकों मे धर्म-प्रभावना करेगी, ऐसी माशा है। पठनीय है।