Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 218
________________ जैन ज्योतिष-साहित्य : एक सर्वेक्षण यात्रा, उत्पात, ग्रहचार, ग्रहयुद्ध, स्वप्न, मुहूर्त, तिथि, प्रारंभ में १० श्लोको मे लर 'ज्ञान का निरूपण है । इस प्रककारण, शकुन, पाक, ज्योतिष, वास्तु, इन्द्रसम्पदा, लक्षण, रण में भावो के स्वामी, ग्रहो के छः प्रकार के बल, दष्टिव्यञ्जन, चिह्न, लग्न, विद्या, औषध, प्रभृति सभी निमित्तो विचार, शत्रु, मित्र,- वक्री माश्री, उच्च-नीच, भवों की के बलाबल, विरोध और पराजय आदि विषयों का संज्ञाएं, भावराशि, ग्रहबल-विचार प्रादि का विवेचन विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। यह निमित्त-शास्त्र किया गया। द्वितीय प्रकरण मे योगविशेष-धनी, सूखी,. का बहुत ही महत्वपूर्ण और उपयोगी ग्रंथ है । इससे वर्षा, दरिद्र, राज्यप्राप्ति, सन्तानप्राप्ति, विद्याप्राप्ति प्रादि का कृषि, धान्यभाव, एव अनेक लोकोपयोगी बातों की जान- कथन है । तृतीय प्रकरण में, निधिप्राप्ति घर या जमीन कारी प्राप्त की जा सकती है। के भीतर रखे गए धन और उस धन को निकालने की केवलज्ञान प्रश्न चड़ामणि के रचयिता समन्तभद्र का विधि का विवेचन है । यह प्रकरण बहुत ही महत्वपूर्ण है। समय १३वी शती है। ये समन्त विजयत्र के पुत्र थे। इतने सरल और सीधे ढंग से इस विषय का निरूपण विजयपत्र के भाई नेमिचन्द्र ने प्रतिष्ठातिलक की रचना अन्यत्र नहीं है। चतुर्थ प्रकरण भोजन और पंचम ग्रामप्रानन्द संवत्सर मे चैत्रमास की पंचमी को की है । अतः पृच्छा है । इन तीनो प्रकरणों में नाम के अनुसार विभिन्न समन्तभद्र का जन्म समय १३वी शती है । इस ग्रथ में दृष्टियो से विभिन्न प्रकार के योगो का प्रतिपादन किया धातु, मूल, जीव, नष्ट, मुष्टि, लाभ, हानि, रोग, मृत्यु, गया है । षष्ठ-पुत्र-प्रकरण है, इसमें सन्तान-प्राप्ति का भोजन, शयन, शकुन, जन्म, कर्म, अस्त्र, शस्त्र, वृष्टि, समय, सन्तान-सख्या, पुत्र-पुत्रियो की प्राप्ति मावि का अतिवृष्टि, अनावष्टि. सिद्धि, असिद्धि प्रादि विषयो का कथन है । सप्तम प्रकरण में छठे भाव से विभिन्न प्रकार प्ररूपण किया गया है। इस ग्रंथ मे अच ट त प य श के रोगों का विवेचन, अप्टम मे सप्तम भाव से दाम्पत्य अथवा पा ए क च ट प य श इन अक्षरो का प्रथम वर्ग, सबध और नवम में विभिन्न दृष्टियो से स्त्री-सूख का प्रा ए ख छठ व फ र प इन अक्षरो का द्वितीय वर्ग, 3 विचार किया गया है । दशम प्रकरण स्त्री-जातक में यो ग ज ड द ब ल स इन अक्षरो का तृतीय वर्ग ई प्रो स्त्रियों की दुष्टि से फलाफल का निरूपण किया गया है। घज्ञ म वहन इन अक्षरो का चतुर्थ वर्ग और उऊण एकादश मे परचक्रगमन, द्वादश में गमनागमन, त्रयोदश मे न भ अ अः इन अक्षरों का पंचम वर्ग बताया गया है। युद्ध, चतुर्दश में सन्धिविग्रह, पंचदश मे वृक्षज्ञान, षोडश प्रश्न कर्ता के वाक्य या प्रश्नाक्षरों को ग्रहण कर संयुक्त. मे ग्रह दोष, ग्रह-पीड़ा, सप्तदश मे पायु, अष्टादश में प्रवअसंयुक्त, अभिहित और अभिधातित-इन पाचों द्वारा तथा हण और एकोनविश मे प्रव्रज्या का विवेचन किया है। प्रालिंगित अभिधुमित और दग्ध-इन तीनों क्रियाविशेषणों बीसवे प्रकरण में राज्य या पदप्राप्ति, इक्कीसवे मे वष्टि. द्वारा प्रश्नो के फलाफल का विचार किया गया है। इस वाईसवे मे अर्धकाण्ड, तेईसवें में स्त्रीलाभ, चौबीसवें में ग्रन्थ में मूक प्रश्नो के उत्तर भी निकाले गये है। यह नष्ट वस्तु की प्राप्ति एव पच्चीसवें में ग्रहो के उदयास्त. प्रश्नशास्त्र की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। सुभिक्ष-दुभिक्ष, महर्ष, समर्घ और विभिन्न प्रकार से तेजीहेमप्रभ-इनके गुरु का नाम देवेन्द्र मूरि था । इनका मन्दी की जानकारी बतलायी गयी है। इस ग्रन्थ की समय चौदहवीं शती का प्रथम पाद है। सम्बत् १३०५ में प्रशसा स्वय ही इन्होंने की है। त्रैलोक्य प्रकाश रचना की गयी है । इनकी दो रचनायें श्रीमद्देवेन्द्रसूरीणां शिष्येण ज्ञानवर्षणः । उपलब्ध है-त्रैलोक्य प्रकाश और मेघमाला।" विश्वप्रकाशकश्चके श्रीहेमप्रभसूरिणा ॥ - अलोक्यप्रकाश बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें ११६० श्लोक है। इस एक ग्रन्थ के अध्ययन से फलित श्री देवेन्द्र सूरि के शिष्य श्री हेमप्रभ सूरि ने विश्वज्योतिप की अच्छी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। प्रकाशक और ज्ञानदर्पण इस ग्रन्थ को रचा। १३. जन ग्रन्थावली, पृ० ३५६.

Loading...

Page Navigation
1 ... 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268