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कुछ प्राचीन केन विद्वान
२२५ कौमारखती कहलाते थे।' सिद्धान्त शास्त्र के बड़े भारी कार थे। कुलभूषण के शिष्य कुलचन्द्र मुनीन्द्र थे जो विद्वान्, प्रशान्त तपस्वी और धीर-वीर थे । विद्वद् समूह अपने प्रजित यश से जंगमतीर्थ के समान थे। सच्चरित्र के भूषण थे और प्रफुल्ल कमल के समान सुशोभित होते और विवेक बुद्धि द्वारा कामदेव को अपने पास फटथे। उनका मन शान्त भावना में निमग्न रहता था । मन कने नहीं देते थे । वे बड़े तपस्वी मोर सैद्धान्तिक विद्वान में सरस्वती का निवास होने से वे सहज ही सुन्दर शरीर थे। के अधिकारी थे । इनके दो शिष्य थे, कुलभूषण और कुलभूषण मुनि ने अपना कोई समय नहीं दिया और प्रमाचन्द्र । इनमें कुल भूषण सद्-वृत्त तपस्वी और सैद्धां- न इनकी कोई कृति ही उपलब्ध है जिससे उनके सम्बन्ध तिक विद्वान थे, और प्रभाचंद्र प्रथित तर्ककार थे। वे दर्शन में विशेष जानकारी प्राप्त होती । यह ईसा की ११वीं शास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान थे। साथ ही सिद्धान्त के भी शताब्दी के विद्वान् जान पड़ते हैं । यह अपने समय के पारगामी थे। इनकी न्याय शास्त्र की दो कृतियां प्रमेय- प्रभावशाली पाचार्य थे। कमल मार्तण्ड और न्याय कुमुद चन्द्र, माणिकचन्द्र ग्रन्थ- भट्टारक मल्लिभूषण : माला से प्रकाशित हो चुके हैं। इनका समय ईसा की
मूलसंघ बलात्कार गण सरस्वती गच्छ के भट्टारक ११वी शताब्दी जान पड़ता है।
विद्यानन्द के पट्ट पर प्रतिष्ठित हुए थे । अपने समय के कुलभूषण :
मच्छ विद्वान थे और मल्लिभषण गुरु के नाम से उल्ले___यह मूल संघान्तर्गत नन्दीगण के भेदरूप देशी गण के खित किए जाते थे। ब्रह्मश्रुत सागर ने इनका सुन्दरगोल्लाचार्य के शिष्य प्रविद्धकर्ण कौमारवती पधमन्दी शब्दों में स्मरण किया है । 'तत्पट्टमुनि मल्लिभूषण गुरुसैद्धान्तिक के शिष्य थे। कुलभूषण को शिलालेख के पद्य भट्टारको नंदतु' (प्रक्षय निधि विधान कथा पं०५०)। में चारित्रसागर और सिद्धान्त के पारगामी बतलाया गया तत्पाद-पंकज रजो रचितोत्तमांगे, श्री मल्लिभूषण गुरुर्विदुषां है। यह सिद्धान्त मुनीन्द्र अपने प्रजित यश से उज्ज्वल वरेण्यः। (पल्लिविधान कथा २४०) इससे स्पष्ट है कि होने के कारण जंगमतीर्थ के समान थे । मंत्रण, मोक्ष और मल्लिभूषण विद्वान भट्टारक थे । ब्रह्मश्रुत सागर ने पल्लसदगुणों के समुद्र को बढ़ाने में वे चन्द्रमा के समान थे। विधान कथा की रचना मल्लि भूषण गुरु के उपदेश से तथा सरस्वती देवी के चित्त रूपी वल्ली के पद-पंकज (के रची थी। जैसा कि उसके निम्न पद्यांश से प्रकट हैनिवास) से मर्वयुक्त विद्वत्समुदाय के हृदय कमल के अंतर- 'श्री मल्लिभूषण गुरु प्रवरोपदेशात् शास्त्र व्यवापयदिदं राग से उनका मन रंजायमान था।
कृतिनां हृदिष्टं" २४८ । इनके सपर्मा प्रथित तर्ककार प्रभाचन्द्र थे, जो दर्शन- विरुदावली में मल्लिभूषण को 'प्रवादिगजयुथ-केसरी, शास्त्र के अतिरिक्त सिद्धान्त के विद्वान् एवं कुशल टीका- और पद्मावती के उपासक बतलाया है । इन्होंने मंडप३. प्राविद्ध कर्णादिक पद्मनन्दी सैद्धान्तिकारण्योजनि
चन्द्राख्यो मुनिराज पण्डितवरः श्री कुन्द-कुन्दान्वयः । यस्य लोके ।।
श्रवण वेल्लोल लेख नं.४० कौमारदेव तिता प्रसिद्धि जीयस्त सोशामनिधिः
तस्य श्री कुलभूषणाख्य सुमुनेश्शिष्यो विनेयस्तुतः । स धीरः ॥ . -श्रवण वेल्गोल लेख नं.४० प्राविद्ध कर्णादिक पद्मनन्दि सदान्तिकारव्योऽजनि
सद्वत्त: कुलचन्द्र देव मुनिर्यस्सिद्धान्त विद्या निधिः ॥ यस्यलोके।
श्रवण वेल्गोल नं. ४० कौमारदेव तिता प्रसिद्धि यस्तु सो ज्ञान-निधि- ५. मंत्रण मोक्षसद्गुण गणब्धि य बुद्धिगे चद्र नंते वासुधीरः ॥१५॥
कांतेय चित्तवल्लि पदपंकजद्दप्त बुघालि हृत्सरीतच्छिष्यः कुलभूषणारव्य यतिपश्चारित्र वारान्निधि- जांतररागरंजित मनं कुलभूषण दिव्य सेव्य'स्सिद्धान्ताम्बुधिपारिगो नत विनेयस्तत्सधौ महान ।' सद्धान्त मुनीन्द्र रूजित-यशोज्वल जंगमतीर्थ कल्परू १२ शकाम्भोरुहभास्करः प्रपित तर्क प्रग्यकाः प्रभा
ताडपत्रीय धबला की कन्नड लिपि प्रशस्ति