Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 216
________________ जैन ज्योतिष-साहित्य : एक सर्वेक्षण २११ शकून प्रौर स्वप्न प्रादि का भी विस्तार-पूर्वक वर्णन किया सिद्धि प्रसिद्धि प्रादि का विचार विस्तार पूर्वक किया गया गया है। है। प्रश्नशास्त्र की दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रर्धकाण्ड में तेजी-मन्दी का ग्रहयोग के अनुसार है। विचार किया गया है। यह ग्रंथ भी १४६ प्राकृत गाथानों उदय प्रभदेव - इनके गुरु का नाम विजयसेन सूरि में लिखा गया है। था। इनका समय ई. सन् १२२० बताया जाता है। मल्लिसेन-ये संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं के इन्होने ज्योतिष विषयक, प्रारम्भ सिद्घि, अपरनामा व्यवप्रकाण्ड विद्वान थे। इनके पिता का नाम जिनसेन सूरि हारचर्या ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ पर वि० सं० था। ये दक्षिण भारत के धारवाड़ जिले के अन्तर्गत गदक- १५१४ में रत्नशेखर सूरि के शिष्य हेमहंस मणि ने एक तालुका नामक स्थान के रहने वाले थे। इनका समय ई० विस्तृत टीका लिखी है । इस टीका मे इन्होंने मुहर्त संबंधी सन् १०४३ माना गया है। इनका मार्यसद्भाव नामक ___ साहित्य का अच्छा संकलन किया है। लेखक ने प्रथ के ज्योतिषग्रथ उपलब्ध है । प्रारम्भ मे ही कहा है प्रारम्भ में ग्रंथोक्त अध्यायों का संक्षिप्त नामकरण निम्न प्रकार दिया है। सुग्रीवादिमनीन्द्रः रचितं शास्त्रं यदार्यसभावम् । तत्सम्प्रत्यार्याभिविरच्यते मल्लिषेणेन ॥ वैवज्ञदीपकालिका व्यवहारचर्यामारम्मसिद्धिमदयप्रभ देवानाम शास्तिक्रमेण तिथिवारमयोगराशिगोचर्य-कार्याध्वजघूमसिंहमण्डल वृषखरगजवायसा भवन्त्याः । मायन्ते ते विद्वदभिरिहैकोत्तरगणनया चाष्टो। गमवास्तुविलग्नोमिः । इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि इनके पूर्व भी सुग्रीव हेमहंसगणि ने व्यवहारचर्या नाम की सार्थकता दिखप्रादि जैन मुनियों के द्वारा इस विषय की और रचनायें लाते हुए लिखा हैभी हई थीं, उन्हीं के सारांश को लेकर प्रार्यसदभाव की "व्यवहार शिष्टजनसमाचारः शुभतिथिवारादिष रचना की गई है। इस कृति में १६५ पार्याय और अन्त शुभकार्यकरणादिरूपस्तस्य चर्या ।" यह ग्रन्थ 'महर्त चिता. मे एक गाथा, इस तरह कुल १६६ पद्य है । इसमे ध्वज, मणि' के समान उपयोगी और पूर्ण है। महर्त विषय की घुम, सिंह, मण्डल, वृष, खर, गज और वायस-इन पाठों जानकारी इस अकेले ग्रंथ के अध्ययन से की जा सकती पार्यों के स्वरूप और फलादेश वणित है। भट्टवोसरि-'प्रायज्ञान' तिलक, नामक ग्रन्थ के रच- राजादित्य - इनके पिता का नाम श्रीपति और माता यिता दिगम्बराचार्य दामनन्दी के शिष्य भट्टवोसरि है। का नाम वसन्ता था। इनका जन्म कोडिमण्डल के 'यविनयह प्रश्नशास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमे २५ प्रकरण बाग' नामक स्थान में हुआ था। इनके नामान्तर राज और ४१५ गाथायें है। ग्रन्थकर्ता की सर्वोपज्ञ वृत्ति भी वर्म, भास्कर और वाचिराज बताये जाते है। ये विष्णहै। दामनन्दी का उल्लेख श्रवणबेल्गोल के शिलालेख नं० वर्धन राजा की सभा के प्रधान पण्डित थे, अतः इनका ५५ मे पाया जाता है। ये प्रभाचन्द्राचार्य के सधर्मा या समय सन् ११२० के लगभग है । यह कवि होने के साथगुरुभाई थे। अतः इनका समय विक्रम सम्वत की ११वीं साथ गणित के माने हुए विद्वान थे। शती है और भट्टवोसरि का भी इन्ही के पास-पास का "कर्णाटक-कवि-चरित" के लेखक का कथन है कि समय है। कन्नड़ साहित्य में गणित का प्रथ लिखने वाला यह सबसे इस ग्रन्थ मे ध्वज, धूम, सिंह, गज, खर, श्वान, वृष, बड़ा विद्वान् था। इनके द्वारा रचित व्यवहारगणित, क्षेत्र. ध्वांक्ष-इन पाठ पार्यों द्वारा प्रश्नों के फलादेश का विस्तृत गणित, व्यवहाररत्न तथा जैन-गणित-मूत्रटीकोदाहरण और विवेचन किया है। इसमें कार्य, प्रकार्य, जय-पराजय, लीलावती-ये गणित ग्रन्थ उपलब्ध है। १२. प्रशस्ति संग्रह, प्रथम भाग, सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार, प्रस्तावना, पृ० ६५-६६ तथा पुरातन वाक्य सूची की प्रस्तावना, पृ० १०१-१०२ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268