Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 220
________________ जैन ज्योतिष-साहित्य : एक सबक्षण २१५ पटल और चमत्कारचिन्तामणि टबा नामक दो ग्रंथों की बताया जाता है। ये ज्योतिष, न्याय, व्याकरण और रचना की है। ये महर्त और जातक, दोनों ही विषयों के दर्शन शास्त्र के धुरन्धर विद्वान थे। इन्होंने ग्रहलाघव के पूर्ण पंडित थे। चिन्तामणि टवा में द्वादश भावों के अनुसार ऊपर वातिक नाम की टीका लिखी है। वि० सं० १०६२ ग्रहों के फलादेश का प्रतिपादन किया गया है। विवाह में जन्मकुण्डली विषय को लेकर "यशोराज-पद्धति" नामक पटल में विवाह के महूर्त और कुण्डली मिलान का सागो- एक व्यवहारोपयोगी ग्रंथ लिखा है । यह ग्रन्थ जन्मकुण्डली पांग वर्णन किया गया है। की रचना के नियमों के सम्बन्ध में विशेष प्रकाश डालता है। उत्तरार्द्ध में जातक पद्धति के अनुसार सक्षिप्त फल लब्धचन्द्रगणि-ये खरतर-गच्छीय कल्याणनिधान बताया है। के शिष्य थे। इन्होंने वि० सं० १०५१ में कार्तिक मास में जन्मपत्री-पद्धति नामक एक व्यवहारोपयोगी ज्योतिष इनके अतिरिक्त विनयकुशल, हरिकुशल, मेघराज, का ग्रन्थ बनाया है। इस ग्रन्थ में इष्टकाल, मया, भयोग, जिनपाल, जयरत्न, सूरचन्द्र प्रादि कई ज्योतिषियों की लग्न, नवग्रहो का स्पष्टीकरण, द्वादशभाव, तात्कालिक ज्योतिष सम्बन्धी रचनायें उपलब्ध है। जैम ज्योतिष चक्र, दशबल, विंशोत्तरी दशा साधन आदि का विवेचन साहित्य का विकास आज भी शोष-टीकामों का निर्माण एवं संग्रह-ग्रन्थों के रूप में हो रहा है। संक्षेप में प्रककिया गया है। गणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमितिगणित, प्रतिबाधती मनि-ये पाश्व-चन्द्रगच्छीय शाखा क मुनि भागणित, पंचाग निर्माण गणित, जन्मपत्र निर्माण गणित थे। इनका समय वि० सं० १०८३ माना जाता है। प्रादि गणित-ज्योतिष के अंगों के साथ होराशास्त्र, इन्होंने तिथिसारिणी नामक ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सहिता," मुहूर्त सामुद्रिक शास्त्र, प्रश्नशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, लिखा है। इसके अतिरिक्त इनके दो-तीन फलित ज्योतिप । निमित्तशास्त्र, रमलशास्त्र, पासाकेवली प्रति फलित के भी मुहर्त सम्बन्धी ग्रन्थ उपलब्ध है। इनका सारणी अगों का विवेचन जैन ज्योतिष में किया गया है। जैन ग्रन्थ, मकरन्द सारणी के समान उपयोगी है। ज्योतिष साहित्य के अब तक पांच सौ ग्रन्थों का पता लग यशस्वतसागर-इनका दूसरा नाम जसवंतसागर भी चुका है।" 00 महावीर-वाणी उत्तम अति मिलने पर मी श्रद्धा का होना दुर्लमतर , मिथ्यात्वोपासक जन हैं, मत कर प्रमाद, गौतम ! क्षण-मर । धार्मिक श्रदा पा फिर धर्म निमाने वाले दुलं मतर , काम-गृद्ध बहुजन है, भतः न कर प्रमाद, गौतम क्षण-मर ॥ -उत्तराध्ययन-सूत्र पद्यानुवाद-मुनि श्री मांगीलाल 'मुकुस' १५. भद्रबाहु-संहिता का प्रस्तावना अंश । १६. महावीर स्मृतिग्रन्थ के अन्तर्गत "जैन ज्योतिष की व्यवहारिकता" शीर्षक निबन्ध, पृ. १६६-१६७ । १७. वर्णी-अभिनन्दम-ग्रन्थ के अन्तर्गत "ज्योतिष का पोषक जैन ज्योतिष", पृ. ४७५-४६३

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