Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 217
________________ २१२, वर्ष २८, कि०१ अनेकान्त पद्मप्रभसूरि-नागौर की तपागच्छीय पट्टावली से संवत्सरफल, ग्रहद्वेष, मेघों के नाम, कुलवर्ण-ध्वनि-विचार, पता चलता है कि ये वादिदेव सूरि के शिष्य थे । इन्होने देशवृष्टि, मासफल, राहुचन्द्र, १४ नक्षत्रफल, संक्रान्ति-फल भुवनदीपक या ग्रहभावप्रकाश नामक ज्योतिष का ग्रन्थ आदि विषयों का निरूपण किया गया है। लिखा है। इस ग्रंथ पर सिंहतिलक सूरि ने वि० सं० १३- महेन्द्रसूरि-ये भूपुपुर निवासी मदनसूरि के शिष्य ३६ में एक विवृत्ति लिखी है । "जैन साहित्य नो इति· तथा फिरोजशाह तुगलक के प्रधान सभा-पण्डित थे। इन्होंने हास" नामक ग्रंथ मे इन्होने इनके गुरु का नाम विबुधप्रभ नाड़ीवृत्ति के धरातल में गोल पृष्ठस्थ सभी वृत्तों का परिसूरि बताया है। भुवनदीपक का रचना काल वि० सं० णमन करके यन्त्र राज नामक ग्रह-गणित का उपयोगी ग्रंथ १२९४ है। यह ग्रंथ छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्व- लिखा है। इनके शिष्य मलयेन्दु सूरि ने इस पर सोदाहरण पूर्ण है। इसमें ३६ द्वारा प्रकरण है। राशिस्वामी, उच्च- टीका लिखी है। इस ग्रंथ में परमाक्रान्ति २३ अंश ३५ नीचत्व, मित्र-शत्रु, राहु का गह, केतु स्थान, ग्रहो के स्व. व.ला मानी गई है। इसकी रचना शक सम्वत् १२६३ में हुई रूप, द्वादश भावो से विचारणीय बातें, इष्टकाल ज्ञान, है। इसमें गणिताध्याय, यन्त्र-घटनाध्याय, यन्त्र-रचनालग्न सम्बन्धी विचार, विनष्टगृह, राजयोग का कथन ध्याय, यन्त्र शोधनाध्याय और यन्त्र-विचारणाध्याय-ये लाभालाभ, विचार लग्नेश की स्थिति का फल. प्रश्न द्वारा पांच अध्याय हैं। गर्भ-विचार, प्रदन द्वारा प्रसव, ज्ञान, यमज्ञ विचार. मत्य- "क्रमोत्कमज्यानयन, भुजकोटिज्या का चापसाधन, योग, चौर्यज्ञान, द्रेष्काणादि के फलो का विचार विस्तार क्रान्तिसाधक युज्याखंडसाधन, युज्याफलानयन, सौम्यसे किया है। इसमें कुल १०० श्लोक है। इसकी भाषा गणित के विभिन्न गणितों का साधन, अक्षांश से उन्नतांश संस्कृत है। साधन, ग्रंथ के नक्षत्र ध्रुवादिक से अभीष्ट वर्ष के ध्रुवानरचन्द्र उपाध्याय-ये कातदहगच्छ के सिंहसरि के दिक का साधन, नक्षत्रों के हक कर्मसाधन, द्वादश राशियों शिष्य थे। उन्होने ज्योतिष शास्त्र के कई ग्रथो की रचना के विभिन्न वृत्त सम्बन्धी गणितों का साधन, इष्ट शंकु की है। वर्तमान मे इनके बेड़ा जातक वृत्ति, प्रश्न शतक, से छायाकरण साधन, यन्त्रशोधन प्रकार और उसके अनुप्रश्न-चतुविश तिवा, जन्म-समटीका, लग्न विचार और सार विभिन्न यन्त्रों द्वारा सभी ग्रहों के साधन का गणित ज्योतिष प्रकाश उपलब्ध है। नरचन्द्र ने सं० १३२४ में बहुत सुन्दर ढंग से बताया गया है। इस ग्रथ मे पचांगमाघ सुदी ८ रविवार को बेड़ा जातक वत्ति की रचना निर्माण करने की विधि का निरूपण किया है। १०५० श्लोक प्रमाण में की है । ज्ञानदीपिका नाम की 'भद्रबाहु-संहिता' अष्टांग निमित्त का एक महत्वपूर्ण एक अन्य रचना भी इनकी मानी जाती है । ज्योतिष- ग्रन्थ है। इसके प्रारम्भ के २७ अध्यायो में निमित्त और प्रकाश संहिता और जातक सम्बन्धी महत्वपूर्ण रचना है। संहिता विषय का प्रतिपादन किया गया है । ३०वें अध्याय अट्ठकवि या अहंदास-ये जैन ब्राह्मग थे। इनका में अरिष्टों का वर्णन किया गया है। इन प्रन्थों का समय ईस्वी सन् १३०० के आसपास है । प्रहंदास के पिता निर्माण श्रुतकेवली भद्रबाहु के वचनों के आधार पर हुआ नागकुमार थे। अर्हदास कन्नड़ भाषा के प्रकाण्ड विद्वान है। विषय निरूपण और शैली की दृष्टि से इसका रचनाथे। इन्होने कन्नड़ मे अट्ठमत नामक ज्योतिष का महत्व- काल ८.६वी शती के पश्चात् नहीं हो सकता है। हाँ, पूर्ण ग्रन्थ लिखा है । शक संवत की चौदहवी शताब्दी में लोकोपयोगी रचना होने के कारण उसमें समय-समय पर भास्कर नाम के प्रान्ध्र कवि ने इस ग्रंथ का तेलगू भाषा संशोधन और परिवर्तन होता रहा है। में अनुवाद किया था। अटुमत मे वर्षा के चिह्न, प्राक- इस ग्रंथ में व्यञ्जन, अंग, स्वर, भौम, छन्न, अन्तस्मिक लक्षण, शकुन, वायुचक्र, गृह-प्रवेश, भूकम्प, भूजात- रिक्ष, लक्षण एवं स्वप्न-इन पाठों निमित्तों का फल-निरूफल, उत्पात-लक्षण, परिवेश-लक्षण, इन्द्रधनुर्लक्षण, प्रथम- पणसहित विवेचन किया गया है। उल्का, परिवेशण, विद्युत, गर्भ-लक्षण, द्रोणसंख्या, विद्युत-लक्षण, प्रतिसूर्य-लक्षण, अभ्र, सन्ध्या, मेष, बात, प्रवर्षण, गन्धर्वनगर, गर्भ लक्षण

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