Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 200
________________ महाबीर-काल : कुछ ऐतिहासिक व्यक्ति १६३ मे महात्मा बुद्ध भ. महावीर के सिद्धान्तो से इतना म्वर्ग के देव परीक्षा हेतु एक रोगी कुष्ठी, अत्यंत दुर्गन्ध प्रभावित हुए कि वे जैन बन गए; परन्तु जैन मुनि पूर्ण कि कोई उनके पास भी न जाता था, मुनि बनकर का कठिन तप और २२ परिषह सहन न कर पाने के उनकी नगरी मे पाया। दोनो ने बड़ी श्रद्धा से उनका कारण अपना एक नया मध्यम (बौद्ध) धर्म प्रचलित कर ब्याब्रत किया। उसका मल-मत्र तक भी उन्होंने उठाया दिया। महात्मा बुद्ध स्वय स्वीकार करते है कि उसने जैन जिसे देखकर वह मनि असली देव-रूप मे प्रगट हुमा । उन मनियो की नियाग्रा का पालन किया।" अनेक विद्वानो का दोनो की बड़ी प्रशसा की और महाराजा उदयन सम्यक् कहना है कि महात्मा बुद्ध ने अनेक जैन सिद्धान्त अपने के तीसरे निविचिकित्सा प्रग मे जग प्रसिद्ध हुये। बौद्ध धर्म में शामिल किए।" बुद्ध भ० महावीर को सर्व १४. सती चवना-चेटक की पुत्री इतनी सुन्दर थी दष्टि से ज्ञानी स्वीकार करते थे और कहते थे कि ऐमा कि एक विद्याधर उसे उठाकर ले गया और अपनी पट अनुपम ज्ञान उन्हे (बुद्ध को) प्राप्त नहीं । गनी बनाना चाहा। वह सहमत न हुई तो एक भयानक १३ उदय सिन्ध-ये सौवीर के इतने महान सम्राट जगल में छोड़ दिया। वहाँ भीलों के राजा ने अपनी स्त्री कि कई मो मकुट बन्द राजे उनके प्राधीन थे । चेटक की बनाना चाहा और इनकार करने पर कोशाम्बी के बाजार पुत्रा प्रभावती उनकी पट रानी थी। दोनो वीर-भक्त थे। में उसे नीलाम कर दिया। एक वैश्य ने उसे खरीद लिया। अपनी राजधानी में उन्होंने महावीर जैन मन्दिर भ० चन्दना उसके साथ नहीं जाती थी। वहां के सेठ वृपभ महावीर के जीवन काल में ही बनवा लिया था जिसमे सेन बहन-सा धन वेश्या को देकर चन्दना को घर ले उन्होने भ० महावीर की स्वर्णमयी प्रतिमा विराजमान प्राया। उनकी मेठानी ने चन्दना को अपने से भी सुन्दर कर रखी थी।" उनके मंदिर मे भ० महावीर को और चतुर जानकर ईर्ष्याभाव से उसके सर के बाल कटवा मुन्दर काष्ठ की एक बड़ी अनुपम और कलापूर्ण प्रतिमा कर लोहे की जजीरो में जकड़ कर काल कोठरी म बन्द इतनी मनोज्ञ थी कि मालवा देश का राजा चन्द्रप्रद्योत कर दिया और खाने को मिट्टी के प्याले में कोदों के दाने उस सन्दल की वीर-मूति को अपनी राजधानी उज्जैन ले देती थी। भ. महावीर को विहार करते हुये कौशाम्बी प्राये गया और उसे उदयन युद्ध करके वापस लाया।" राजा ६ माह हो गये । राजे महाराजे प्रगाने को खड़े होते पर गनी दोनो दिगम्बर मुनियो के इतने भक्त और मेवक थे कि उनका निमित्त न मिलता । चन्दना ने झरोखे मे उनके 9 In fact Buddha being inspired by the (1) Budoha must have borrowed Jaina teachings of Lord Mahavira, became JAIN Doctrines. SAINT, but being unable to stand the --- Prof. Sil: J.H.M. November, 1928, p. 3. hard life of a Jain monk, he founded the (1) Jainism is mother of Buddhism. Madhyam Path ---Dr. H. Jacobi, Digamber Jain, Surat, -J.H M. Feb. 1925, p. 26. Vol. V, p. 48. 10(i) मज्झिम नि० १/२/६ (हिन्दी पृ. ४८-४६)। 12. मज्झिम नि० भाग १, पृ०६२-६३ । (1) विस्तार के लिए, हमारा वर्द्धमान महावीर" पृ. ४३.६ । 11. Karma theory of Jain is an original and 13. Udayin was a devout Jain King. He got integral part of their system. They built a very beautiful Jaina temple in his (Buddhist's) must have borrowed the capital with gold image of Lord Mahavira. term (Asrava) from Jains. - Dr. Kamta Prasad, Sanksipt Jain -Dr. H Jacobi, Encyclopaedia of Itihas Vol. I, pp. 14-23. Religion & Ethics, Vol. VII, p. 472. 14 Da. U.P. Shah : Studies in Jain Art.

Loading...

Page Navigation
1 ... 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268