Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 207
________________ २०२, वर्ष २८, कि०१ अनेकान्त महाराज शतानीक ने उपस्थित होकर भगवान से अपनी शक्ति के सामने वह एक बाल-प्रयास ही था। युद्ध का तथा नगरवासियों की ओर से प्रार्थना की, परन्तु वे मौन अातंक छा गया। रहे। इस दशा में लगभग ६ महीने बीत गए। मगावती ने इस घोरतम अंधकार तथा निस्सहाय अवस्था एक दिन भगवान् महावीर धनवाह सेठ के घर की में भगवान महावीर का स्मरण किया। भगवान महावीर उस चौखट पर जाकर खड़े हो गए जहाँ पर चन्दना बन्दिनी कौशाम्बी के उद्यान में आ गये। महावीर का आगमन होते का जीवन व्यतीत कर रही थी। वह भगवान् को देख कर ही मृगावती ने कौशाम्बी नगर के सब द्वार खुलवा दिए। एकदम खड़ी हो गई । वह प्रसन्न थी, सब अभिग्रह पूरे थे भय तथा अन्धकार अभय तथा प्रकाश में परिवर्तित हो परन्तु प्रभुकण नही थे। भगवान मुडे, ऐसा देख कर गए । मृगावती भगवान के समवसरण में आई। वहां पर चन्दना की आखों से अश्रधारा बह निकली। उसने प्रार्थना चण्डप्रद्योत भी प्राया। भगवान् की दिव्य-ध्वनि हुई। की-पाप तो नारी जाति के उद्धारक हैं। दास-प्रथा सबने प्रात्मधर्म तथा अहिंसा का रस-पान किया। तोड़ने के लिए कटिबद्ध है, फिर भी आप लौट चले। चण्डप्रद्योत का आक्रोश तथा काम शान्त हो गया। रानी भगवान् ने मुड़ कर देखा और वापिस आ गए। अब तो ने भगवान से प्रार्थना की और साध्वी होने की इच्छा सभी संकल्प पूरे हो गए थे। चन्दना ने उबले उड़द का प्रकट की। कौशाम्बी के राजकुमार अपने पुत्र उदयन ग्राहार भगवान् को दिया । सब बेड़ियां टूट गई, सती की सुरक्षा का भार चण्डप्रद्योत को सौंपकर उसने जयन्ती का तेज चमक उठा । दासी से आहार लिया । यह बात (शतानीक की भगिनी) के साथ प्रायिका-दीक्षा ले ली। सारे नगर में फैल गई । दासी चन्दना को पहचान लिया वासना का तमस् प्रेम में बदल गया। प्राक्रान्ता संरक्षक गया कि वह राजा दधिवाहन की पुत्री वसुमती है। बन गया। मृगावती का शील सुरक्षित रह गया - यह दासत्व से चन्दना की मुक्ति हो गई । दासत्व पर कुठारा. नारी की सुरक्षा तथा अहिंसा का अद्वितीय उदाहरण है। घात तथा नारी-बन्ध-विमोचन की इससे बड़ो घटना और चतुर्विध संघ में नारी क्या हो सकती है ? नारी-उत्थान का अनुपम प्रयोग था। भगवान महावीर के सर्वोदय-तीर्थ में हिंसा तथा दासचन्दनबाला ने संसार त्याग कर भगवान से प्रायिकादीक्षा ले ली। वह प्रात्मोत्थान के मार्ग की पथिक बन प्रथा का विरोध है और समता का उपदेश है। जातिगई। नारी-जाति के विकास का अवरुद्ध द्वार खुल प्रथा और ऊंच-नीच का इसमें कोई स्थान नहीं। नारी जाति का पूर्णोदय उसमें है। नारी की गरिमा का सम्यक् गया। मूल्यांकन है। महावीर भगवान द्वारा प्रतिपादित चतविध मृगावती की कथा संघ-श्रमण, श्रमणिका श्रावक तथा श्राविका-माज भी दूसरी घटना बड़ी ही विचित्र है । अहिंसा तथा नारी चल रहा है। कल्याण का अद्भुत प्रयोग है। संघ-व्यवस्था धर्म-तीर्थ के लिए प्रत्यन्नावश्यक मानी उज्जयिनी का राजा चण्डप्रद्योत बहुत शक्तिशाली गई है। वर्तमान काल में भी श्राविका (गहस्थ-नारी) को तथा कामुक था । वह शतानीक की पत्नी मह: चतुर्विध संघ की प्रवृत्ति में केन्द्र माना गया है। सुशील, रानी मृगावती पर मोहित हो गया था और अपने लिए उसकी मांग की। शतानीक ने प्रस्ताव ठुकरा दिया । चरित्रवती तथा धर्मज्ञा नारी पति को सुखी रखने का इसका प्रत्याशित फल कौशाम्बी पर प्राक्रमण हुआ। शता कारण बनती है तथा श्रमण और श्रमणिका को नवधा भक्ति से माहार देकर धर्म-तीर्थ के अवगाहन में बड़ा योग नीक घबरा गया और रुग्ण होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ। देती है। महारानी तथा जनता ने कौशाम्बी की यथाशक्ति गांधी जी गुजरात-निवासी थे। गुजरात प्रदेश की रक्षा करने का प्रयास किया, परन्तु चण्डप्रद्योत की सैन्य संस्कृति नत्व-प्रधान रही है। वहां पर नारियों का बड़ा

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