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महावीर-कालीन भारत की सांस्कृतिक झलक
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वाद्य, युद्ध, शस्त्रयुद्ध, मल्लयुद्ध, गजलक्षण, हयलक्षण, जो राजा प्रथम विवाह अन्य जातियो मे कर लेता गोलक्षण, काव्य, प्रहेलिका, द्यूत प्रादि । राजाओं को इन था, वह जातिच्युत हो जाता था और वह अपनी विवाबिद्यामी का जानना प्रावश्यक माना जाता था । साधारण हिता की जाति का माना जाता था। यह सब रक्तलोग भी अधिक से अधिक विद्याप्रो मे निपुण होते थे। शुद्धि की भावना से किया जाना था। शाक्यो में तो शाक्यों
राजानो के राज्यारोहण के समय विशेष प्रकार के के अतिरिक्त पुरुप या स्त्री से विवाह न करने का कठोर आयोजन होते थे। किसी पुष्करिणी, नदी अथवा नदियो, नियम था । रक्तशुद्धि की रक्षार्थ चाचा की लड़की या तीर्थों आदि के जल से अभिषेक किया जाता था। इस सगी बहन से भी विवाह करना प्रचलित था। नारियाँ अवसर पर अन्य राजा, मत्री, सामत, परिजन, पुरजन, भी विदुषी और युद्धनिपुण होती थी तथा राजकार्यों में पुरोहित प्रादि उपस्थित होते थे और स्वस्ति-वाचन, प्राशी- भी भाग लती थी। सामतो की कन्यानो से भी राजपुरूष
दि, कर्तव्य-शिक्षा प्रादि के साथ सिंहासन पर बैठाया विवाह करत थे । श्वेताम्बर प्रथो के अनुसार महावीर का जाता था और तिलकोपरात प्रजा तथा अमात्य राजभक्ति विवाह महासामत समरवीर की कन्या यशोदा से हुआ की प्रतिज्ञा लेते थे। अनेक प्रकार के मंगल-द्रव्य-कलश, था : दिगम्बर जैन-शास्त्रो के अनुसार महावीर प्राजन्म धान्य, वस्त्र प्रादि रखे जाते थे।
अविवाहित थे। खड्ग, गदा, धनुष-बाण, हल-मूसल, भाले प्रादि युद्ध के मुख्य प्रायुध थे। मल्लयुद्ध भी प्रचलित था । प्रजात.
सामाजिक स्थिति : शत्रु ने दो नये प्रायुधो-रथमूसल और महाशिलाकटक महावीर-काल मे सामाजिक स्थिति भी सुव्यवस्थित का प्रयोग किया था। दोनो महासहारक अस्त्रो के सहारे थी। वर्ण और जातियाँ भी विद्यमान थी, पर उनके घेरे उसने बज्जियो पर विजय पाई थी। गज, घोडे, रथ, ऊँट, क टन नहीं थे। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शद, रजक, खच्चर प्रादि युद्ध की सवारिया थी। राजमहिषियों भी चाण्डाल, चर्मकार, स्वर्णकार, कुम्भकार, दारुशिल्पी आदि रण-कौशल में निष्णात होती थी और आवश्यकता पड़ने जातियाँ थी।माचार-विचार भेद से प्रार्य पोर अनार्य के पर युद्ध भी करती थी। कभी-कभी अपने पतियो की सहा- भी विभाग थे। पहले वर्णाश्रम-व्यवस्था कुछ जटिल थी, यतार्थ भी युद्ध भूमि मे साथ जाती थीं । बन्धुल मल्ल के परन्तु महावीर और बुद्ध की विचाराधारा ने उसमे माथ उसकी पत्नी मल्लिका ने भी अभिषेक-पृष्करिणी के परिवर्तन ला दिया था। लिए लिच्छिवियो से युद्ध किया था।
लोगों में विभिन्न प्रकार के वस्त्र और आभषणों का
भी प्रचलन था । वस्त्रों में देवदूष्य, दुकल, क्षोम, चीनाअन्य राष्ट्रो से मैत्री या विग्रह संस्थागार में विचारो- शुक, पटवास, वल्कल आदि और प्राभूषणों में मुकुट, परान्त ही होता था। विवाह भोर दीक्षा साधारणतः कडल, केयूर, चडामणि, कटक, ककण, मुद्रिका, हार, माता-पिता की अनुमति से होते थे। कही-कही स्वयंवर को मेखला, कटिसूत्र कंठक, रत्नावली, नुपुर ग्रादि का प्रचभी प्रथा थी। स्वयवर मे कन्या का बलपूर्वक हरण भी लन था। प्रसाधन-सामग्रियां भी अनेक थी । साधारण से होता था । ऐसे भी उदाहरण मिलते है कि अपहृत कन्या लेकर बहुमूल्य सामग्रिया व्यवहृत होती थी। चन्दव, की इच्छा के विरुद्ध अपहरणकर्ता उममे विवाह नही कु कुम, अगराग, पालक्तक, अजन, शतपाक तेल, सहस्रकरता था, वग्न् कन्या इच्छित पुरुष को लौटा दी जाती पाक नेल, गध, (इत्र), अनेक सुगन्धित द्रव्य, मिश्रित लेप, थी। राजानो मे बहु विवाह प्रचलित था, अन्तर्जातीय मिदूर, कस्तूरी, माला, ताम्बूल, प्रादि के व्यवहार का विवाह भी होते थे, परन्तु पहला विवाह क्षत्रियाणी से उल्लेख मिलता है। लिच्छिवियों की वेश-भूषा को देख करना अनिवार्य था। क्षत्रियाणी से उत्पन्न सतान ही राज्य कर बुद्ध ने उनकी तुलना वायस्त्रिश स्वर्ग के देवो से की अधिकारी होती थी।
की थी। पुरुष और महिला दोनों ही गहने और सजीले
विवाह: