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तीर्थकर महावीर तथा महारमा बुद्ध : व्यक्तिगत सम्पर्क ७. त्रायस्त्रिंश (वर्षावास),
ऐसे ही नगर है जहां दोनों ने अपने धर्म का पर्याप्त प्रचार८. श्रावस्ती राजगह, वैशाली, सुसुमारिगिरि-चुनार प्रसार किया । यदि महावीर का परिनिर्वाण ५२७ ई. पू. (वर्षावास)
और बुद्ध का परिनिर्वाण ४८३ ई. पू. मान कर चला जाय ६. कौशाम्बी (वर्षावास),
तो यह स्वीकार करना पड़ेगा कि महावीर का निर्वाण हो १०. पारिलेयक (वर्षावास),
जाने पर म. बुद्ध ने धर्मचक्रप्रवर्तन किया। परन्तु यह ११. श्रावस्ती, नाला-नालन्दा (वर्षावास), विचार सही प्रतीत नहीं होता । सूत्रकृतांग में महावीर के १२. कुरू-कल्माषदम्य, मथुरा, वेदंजा (वर्षावास), १९वें वर्षावास के समय राजगृह में प्राद्रकुमार का बौद्ध १३. प्रयाग, काशी, वैशाली, चालियपर्वत (वर्षावास), भिक्ष के साथ शास्त्रार्थ होने की घटना का उल्लेख पाया १४. वैशाली, श्रावस्ती, साकेत, प्रापण श्रावस्ती है।" बद्ध का २२वां वर्षावास भी राजगृह में हुमा। इसी (वर्षावास),
प्रकार और भी अनेक प्रसग है । १५. कुसीनारा, कोसल, कपिलवस्तु, राजगृह, चम्पा,
___महा. राहुल जी ने बुद्धचर्या को कालक्रम की दृष्टि ___ कपिलवस्तु (वर्षावास),
से संजोने का प्रयत्न किया है। तदनुसार धर्मचक्रप्रवर्तन १६. प्रलवी-कानपुर (वर्षावास),
के समय ही बुद्ध की भेंट आजीविक संप्रदाय के भिक्षु से १७. कौशाम्बी, राजगृह (वर्षावास),
हुई। हम जानते हैं, गोशालक महावीर के साथ १०वें १८-१९. चालिय पर्वत,
वर्षावास तक रहा । इसलिए संभव है बुद्ध की उसी से या २०. चम्पा, सुम्हदेश (हजारीबाग जिला), राजगृह उसी के अन्य किसी शिष्य से भेंट हई होगी। (वर्षावास),
बुद्ध" जब मंकुल पर्वत पर ववास कर रहे थे, उस २१. वैशाली, राजगृह, श्रावस्ती (वर्षावास),
समय राजगृह के एक श्रेष्ठी ने चन्दन पात्र को सीके पर २२-४५. वर्षावास श्रावस्ती में किया। इस बीच बुद्ध बांध रखा और उसे दिव्य शक्ति द्वारा उठाने को तीर्थंकरों
कोसल, कुरु, राजगृह, नालन्दा सामगाम (शात्मा- से कहा: परन्त प्रजित केशकम्बली, पकुछ कच्चायन, देश), पावा, वैशाली, कुसीनारा आदि स्थानो पर
संजय वेल टिपुत्त, निगण्ठ नातपुत्त व मक्खलि गोशाल ये विहार करते रहे।
सभी तीर्थकर असफल हए । परन्तु बुद्ध के शिष्य पिण्डोल ४६. वैशाली (वर्षावास)। यह वर्षावास युक्तिसंगत
भारद्वाज ने उस बर्तन को सरलता पूर्वक उठा लिया। नहीं दिखाई देता। २६ वर्ष की अवस्था मे बुद्ध
यह सुनकर बुद्ध ने अपने शिष्यों को प्रातिहार्य न करने ने महाभिनिष्क्रमण किया, ३५ वर्ष की अवस्था में का शिक्षा-पद दिया। बाद में बिम्बिसार ने बुद्ध से प्रातिबोधिलाभ हमा और ८० वर्ष की अवस्था में वर्षा- हार्य करने के लिए कहा क्योंकि उक्त सभी तीथिक उन्हें वास से पूर्व, वैशाख-पूर्णिमा को उनका परिनिर्वाण चेलेंज दे रहे थे। यह जानकर बुद्ध ने चार माह बाद हमा । इसलिए अंगुत्तर निकाय (२.४५) का यह प्रातिहार्य करने को कहा। तीथिक वद्ध के पीछे-पीछे चले। कथन कि बुद्ध का ४६वां वर्षावास वैशाली में हमा, उनके साथ वे राजगह और श्रावस्ती भी पहुंचे। बुद्ध ने भ्रान्तिपूर्ण प्रतीत होता है।
अपना प्रातिहार्य प्रसेनजित के समक्ष किया। फलस्वरूप दोनों महापुरुषों का व्यक्तिगत सम्पर्क :
माम की गुठली ने अचानक एक बड़े वृक्ष का रूप ले भ. महावीर और भ. बुद्ध के वर्षावासों और विहार लिया। तीथिक कोई प्रातिहार्य नहीं कर सके। इस प्रसंग स्थलों पर दष्टिपात करने से दोनों महापुरुषों की विहार- में यह भी उल्लेख है कि निगण्ठ लजाते हुए भाग गये। भमि कभी न कभी निश्चित रूप से एक ही ग्राम रही शक ने बुद्ध की सहायता की। यह ध्यान देने की बात होगी। श्रावस्ती, राजगृह, नालन्दा, कौशाम्बी मादि कुछ है कि यहां निगण्ठ नातपुत्त के स्थान पर निगण्ठ (जन १३. सूत्रकृतांग २. ६. पत्र नं. १२५-१५८ ।
१४. चुल्लवग्ग ५, धम्मपद अट्ठकथा ४.२।