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६४, वर्ष २८, कि०१
अनेकान्त
पत्रों को 'शलाका' तथा मत-पत्र-गणक को 'शलाका-प्राहक' सीमा गंगा-तट पर चुंगी के विभाजन के प्रश्न पर झगड़ा कहा जाता था। अप्रासगिक तथा अनर्थक भाषणों की भी हो गया। प्रस्तु, जो भी कारण हो; इतना निश्चित है शिकायत की जाती थी। श्री जायसवाल के मतानुसार, "सुदूर प्रतीत (छठी
कि अजातशत्रु ने इसके लिए बहत समय से बड़ी तैया शताब्दी ई.पू.) से गृहीत इस विचारधारा से 'एक उच्चतः रिया का था। सवप्रथम उसन गगा-तट पर पाटलिपुत्र विकसित अवस्था की विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। (माधुनिक पटना) की स्थापना की । जैन विवरणों के इममें भाषा की पारिभाषिकता एवं प्रौपचारिकता विधि अनुसार, यह युद्ध सोलह वर्षों तक चला, अन्त में वैशाली एवं मविधान की प्रतिनिहित धारणाएँ उच्च स्तर की गणतन्त्र मगध साम्राज्य का अंग बन गया। प्रनीत होती है। इसमें शताब्दियों से प्राप्त पूर्व अनुभव क्या वंशाली-गणराज्य के पतन के बाद लिच्छवियों भी सिदध होता है। ज्ञप्ति, प्रतिज्ञा, गण-पूरक, शलाका, का प्रभाव समाप्त हो गया? इस प्रश्न का उत्तर नका. बहमत-प्रणाली प्रादि शब्दों का उल्लेख, किमी प्रकार की
की रास्मक हो सकता है परन्तु श्री सालेतोर (वही पृष्ठपरिभाषा के बिना किया गया है, जिससे इनका पूर्व प्रच- ५०८) के अनुसार, "बौद्ध साहित्य में इनका सबसे लन सिद्ध होता है।
अधिक उल्लेख हुआ है क्योंकि इतिहास में एक हजार वर्षों वैशाली गणतन्त्र का अन्त
से अधिक समय तक इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही।" वैशाली-गणतन्त्र पर मगधराज प्रजात शत्र का प्राक्र- चौधरी नमार वालवी हाताब्दी में मण इस पर घातक प्रहार था। अजातशत्र की माता चेलना वैशाली के गणराजा चेटक की पुत्री थी, तथापि साम्राज्य
क्रियाशील रहे । गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त लिच्छवि-दौहित्र'
. कहलाने में गौरव का अनुभव करते थे।" विस्तार की उमकी आकांक्षा ने बंगाली का अन्त कर
२५०० वर्ष पूर्व महावीर-निर्वाण के अनन्तर, नवदिया । बदध से भेंट के बाद मन्त्री वम्मकार को प्रजातशत्र द्वारा वंशाली मे भेजा गया। वह मन्त्री वंशाली के मल्लो एवं लिच्छवियों ने प्रकाशोत्सव तथा दीपमालिका लोगों मे मिल कर रहा और उसने उसमे फुट के बीज का प्रायोजन किया और तभी से शताब्दियों से जैन इस वो दिए । व्यक्तिगत महत्त्वाकाक्षामों तथा फूट से इतने पुनीत पर्व को 'दीपावली' के रूप में मनाते हैं। कल्प सूत्र महान गणराज्य का विनाश हुआ। 'महाभारत' मे भी के शब्दों में, "जिस रात भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्त गणतन्त्रो के विनाश के लिए ऐसे ही कारण बताए हैं। किया, सभी प्राणी दुखों से मुक्त हो गए । काशी-कौशल भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा, 'हे राजन् ! हे के अठारह संघीय राजाओं, नव मल्लो तथा नव लिच्छभरतर्षभ ! गणो एव राजकुलो मे शत्रुता की उत्पत्ति के वियों ने चन्द्रोदय (द्वितीया) के दिन प्रकाशोत्सव प्रायोमूल कारण है- लोभ एवं ईर्ष्या द्वेष ! कोई (गण या जित किया; क्योकि उन्होंने कहा -- 'ज्ञान की ज्योति बुझ कुल) लोभ के वशीभूत होता है, तब ईर्ष्या का जन्म होता गई है. हम भौतिक संमार को पालोकित करें। है और दोनो के मेल से पारस्परिक विनाश होता है।" २५०० वें महावीर-निर्वाणोत्सव के सन्दर्भ में प्राधुवैशाली पर माक्रमण के अनेक कारण बताए गए है।
निक भारत वैशाली से प्रेरणा प्राप्त कर सकता है । अनेक
सांस्कृतिक कार्य-कलाप बंगाली पर केन्द्रित है। इसी को एक जैन कथानक के अनुसार, सेयागम (सेचानक) नामक
दृष्टिगत करके राष्ट्र कवि स्व. श्री रामधारी सिंह दिनकर हाथी द्वारा पहना गया १८ शृंखलामों का हार इसका
ने वैशाली के प्रति श्रद्धांजलि निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत मूल कारण था । बिम्बसार ने इसे अपने एक पुत्र वेहल्ल
की हैको दिया था परन्तु अजातशत्रु इसे हड़पना चाहता था। वैशाली जन का प्रतिपालक, गण का मादि विधाता। वेहल्ल हाथी और हार के साथ अपने नाना चेटक के पास जिसे ढूंढता देश प्राज, उस प्रजातन्त्र की माता ।।
रुको एक क्षण, पथिक ! यहाँ मिट्टी को सीस नवामो। भाग गया। कुछ लोगों के अनुसार, रत्नों की एक खान ने
राज-सिदिधयों की सम्पत्ति पर, फन चढ़ाते जात्रो॥OD अजातशत्रु को आक्रमण के लिए ललचाया। यह भी कहा केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, जाता है कि मगध साम्राज्य तथा वैशाली-गणराज्य की वैस्ट ब्लाक. रामकृष्णपुरम-७, नई दिल्ली-२२ २५. वही -पृष्ठ ६५-६६.
२६. वही-पृष्ठ १०६ पर उद्धृत ।