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महावीर स्वामी : स्मृति के झरोखे में
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मालव भूमि ने भारतीय कला को विशेष योग प्रदत्त पार्श्व मे विद्याधर युगल पूजा सामग्री लिए हये है। देवता किया है। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का पुरातत्व- के स्कंधों के समीप दोनो पावों में दो सिहों का उत्कृष्ट संग्रहालय मालवा व उज्जयिनी के अवशेषों से सम्पन्न है। चित्रण है। डा. कुमारस्वामी ने इसे हवी शती की प्रतिमा संग्रहालय में लगभग दस प्रतिमायें सर्वतोभद्र महावीर माना है । सम्भवतः यह प्रतिमा बुन्देलखण्ड में उपलब्ध की है जिन पर पारदर्शी वस्त्र है। सभी में महाबीर पद्मा- हुई थी। सन मे ध्यानावस्था में अंकित है । यहाँ की एक अन्य
केन्द्रीय संग्रहालय, इन्दौर" में सगृहीत महावीर की प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में खड्गासन अवस्था में है। मूर्ति का आकार ७२ X ६६४३० से. मी. है।
प्रतिमाये लेखयुक्त है । डा. वासुदेव उपाध्याय के 'प्राचीन
भारतीय मूर्ति विज्ञान' नामक ग्रथ के चित्रफलक ८२ में मध्य-प्रदेश के प्रसिद्ध कला-केन्द्र खजुराहो" के एक
आदिनाथ एवं महावीर की युग्म मूर्ति का चित्र है । महाजैन मन्दिर में महावीर का एक मनोज्ञ बिम्ब कायोत्सर्ग
वीर की प्रतिमा के पीठ पर उनका वाहन सिह है। मुद्रा में उत्कीर्ण है, जिसमें पूर्णत. नग्न महावीर को उनके विशिष्ट लांछन सिंह से सम्बद्ध रूप मे चित्रित किया गया शिल्प शास्त्र में महावीर है। देव की मुखाकृति पर शान्ति और सौम्यता का भाव
जन प्रतिमा-समूह में तीर्थड्रर प्रतिमा का ही प्राधान्य सुस्पष्ट है । मस्तक पर सर्पफणों के घटाटोपो से युक्त देव
है। जिनों के चित्रण में तीर्थट्टरो का सर्वश्रेष्ठ पद प्रकपार्श्व में खड़े उपासक देवों से आवेष्ठित है। महावीर की
ल्पित होता है । ऋषभनाथ, नेमिनाथ एवं महावीर की एक अन्य पद्मासनस्थ प्रतिमा देवगढ़ के मन्दिर में है। पद्म
मुद्रा कमलासन है जो इनके इसी प्रासन मुद्रा में कैवल्य मय अलंकरणों के प्रभाचक्र से युक्त मूलनायक को प्राकृति प्राप्ति की सूचक है । महावीर के यक्ष-यक्षिणी, केवल वक्ष के दोनों पार्श्व में उनके शासन देवता त्रिभंग मुद्रा में खड़े एव चामरघारी या धारिणी के विषय में प्रतिमा-विज्ञान के
देवता के शीर्ष-भाग से पुन: दो पासीन तीर्थङ्करों का ग्रन्थों में मतैक्य नही है । वह सर्वमान्य है कि उनका ध्वज बिम्ब उत्कीर्ण है। प्रभामण्डल के ऊपर तीन श्रेणियों मे
या वाहन सिह है । अपराजित एव वास्तुमार के अनुसार विभक्त त्रिछत्र के दोनो मोर हाथों में पुष्पमाल लिये हुए
उनका शासन देव मातंग है । शासन-देवी सिद्धायिका, विद्याधर है। पादपीठ के नीचे दो सिंह आकृतियों का
केवल वृक्ष शाल एवं चामरधारी या धारिणी श्रेणिक है। अंकन है।
महावीर के यक्ष का वाहन या लांछन अपराजित के मनुमहावीर की बलूये पाषाण से निर्मित एक विशिष्ट सार हस्ती एवं वास्तुसार के अनुसार गज है। इसी प्रकार प्रतिमा जिसका ऊर्व भाग मात्र ही शेष बचा है, अाजकल यक्षी का वाहन या लाछन अपराजित के अनुसार भद्रासन बोस्टन संग्रहालय मे सरक्षित है । यह ऊवकाय प्रतिमा एवं वास्तुसार के अनुसार सिंह तथा प्रतिष्ठा सारोवार, सक्ष्म निरीक्षण से नग्न रही प्रतीत होती है । प्रतिमा की अभिज्ञान चिन्तामणि, अमरकोष, दिगम्बर जैन प्राइकनोऊँची केश रचना वास्तव में इसकी साधु प्रकृति की सूचक ग्राफी एवं हरिवंश पुराण के अनुसार कमल है। है। महावीर के केश गुच्छक उनके स्कंधों पर लटक रहे है । वक्षस्थल पर तीर्थडुरों का विशिष्ट चिह्न श्रीवत्स प्रतीक शास्त्रीय प्रध्ययन : उत्कीर्ण है। मस्तक के ऊपर प्रदर्शित त्रिछत्र, अशोक वक्ष तीर्थङ्कर ब्रह्मभूत महापुरुष हैं। तीर्थङ्करों के हृदय एवं कछ प्राकृतियों से वेष्टित है। मूर्ति के बाम एवं दक्षिण पर श्रीवत्स का अर्थात् चक्र-चिह्न रहता है। यह धर्मचक्र
विवविद्यालय, उज्जैन के पुरातत्व संग्रहालय की अप्रकाशित जैन प्रतिमायें : डा. सुरेन्द्र कुमार प्रार्य, अनेकान्त, जुलाई-अगस्त १९७२ ।
१६. खजुराहो की अद्वितीय जैन प्रतिमायें : श्री शिवकमार
नामदेव, अनेकान्त, फरवरी १९७४ । २० केन्द्रीय संग्रहालय, इंदौर की संक्षिप्त मार्गदर्शिका ।