Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 166
________________ जैन संस्कृति और मौर्यकालीन अभिलेख चन्द्रगुप्त और बिन्दुसार जैन धर्म के अनुयायी होने से प्रशोक के पूर्वज जैन धर्मानुयायी थे । प्रतः उनके मांस-भक्षण के विरोधी थे । इसकी पुष्टि अरेभाई अभि- राज्य मे श्रमणों और ब्राह्मणों के प्रति अनुचित व्यवहार लेखों से होती है । इसमे लिखा है : राजा जीवधारियों को का प्रश्न ही नही उठता। इसके विपरीत चन्द्रगुप्त मौर्य से मार कर खाने से परहेज करता है। विद्वान पुरालिपि पूर्व मगध मे १५० वर्ष तक नन्दों का राज्य रहा । ये शूद्र शास्त्र के आधार पर इस अभिलेख को तृतीय शती ई० और अत्याचारी थे, जैसा कि इतिहास से विदित होता पू० के पूर्वार्द्ध प्रर्थात् चन्द्रगुप्त मौर्य अथवा बिन्दुसार के है। प्रतः इनके राज्य मे श्रमणों और ब्राह्मणों के प्रति समय का मानते है ।१६ प्रत्याचार होना कोई अस्वाभाविक बात नहीं थी। महाचाणक्य चन्द्रगुप्त का गुरु तथा साम्राज्य का महामंत्री पद्यनन्द ने तो चाणक्य का अपमान भी किया था। चन्द्रथा, वह भी अहिंसा" धर्म में आस्था रखता था तथा गुप्त के सम्राट होते ही स्थिति में परिवर्तन हुप्रा तथा मांस-भक्षण" और मृगया का विरोधी था । अतः सम्राट श्रमणों और ब्राह्मणों के प्रति उचित व्यवहार में वृद्धि हुई। और महामन्त्री द्वारा पारस्परिक विचार-विनिमय के इस अभिलेख में इसी मोर संकेत किया गया है। अत: पश्चात् हिंसात्मक उत्सवों पर प्रतिबन्ध लगाना तथा राज. इस प्रभिलेख की संगति अशोक के पूर्वजों के साथ ही ठीक कीय पाकशाला के निमित्त पशुओं के वध को रोक दना प्रतीत होती है। स्वाभाविक ही है । इसके विपरीत बौद्ध धर्म के अनुयायी वपरात बाद्ध धम के अनुयाया पंचम अभिलेख में धर्म-वृद्धि हेतु भाई-बहिनों तथा अशोक द्वारा मांस-भक्षण का निषेध अस्वाभाविक-सा सम्बन्धियों के अन्त.पुर में राज कर्मचारियों के बीच तथा प्रतीत होता है, क्योंकि स्वय भगवान बुद्ध भी मांस-भक्षण प्रजाजनों में धर्म महामात्र नियुक्त करने का उल्लेख है। करते हैं। प्रतः यह अभिलेख अशोक की अपेक्षा उसके पूर्वजों से कहीं अधिक सम्बन्धित है। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार, राज्याभिषेक से पूर्व ही प्रशोक ने अपने समस्त भाई-बहिनों का वध करवा डाला था । अतः चतुर्थ अभिलेख: इसका प्रमुख विषय हस्ति-दर्शन, विमान-दर्शन, भाई-बहिनों के यहां महामात्र नियुक्त करने वाला अभिअग्नि स्कंध दर्शन तथा दिव्य प्रदर्शनों द्वारा जनता लेख प्रशोक का नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त यह भी मे धर्म के प्रति रुचि उत्पन्न करना है। इसके विचारणीय है कि प्रशोक ने अपने पुत्र और पुत्री को अतिरिक्त इसमें इस बात का भी उल्लेख है कि सैकड़ों भिक्षुक तथा भिक्षुणी बना कर लंका में तथा अन्य भिक्षुमों को तिब्बत प्रादि देशों में धर्म प्रचारार्थ भेजा था। भारत वर्षों से श्रमण और ब्राह्मणों के प्रति अनुचित व्यवहार हो। में भी यह कार्य भिक्षुत्रों से न करा कर धर्म महामात्रों से रहा था, परन्तु देवानां प्रियदर्शी के धर्मानुशासन में उनके क्यों कराया गया, जबकि गहत्यागी मोर निलिप्त भिक्षयों प्रति उचित व्यवहार में वृद्धि हुई है। इस अभिलेख को का जनता पर जितना प्रभाव पड़ता है, उसका शतांश भी भी अशोक के साथ संगति ठीक नहीं बैठती। प्रब क्योंकि वेतनभोगी धर्म महामात्रों का नही पड़ सकता। वास्तहस्ति दर्शन के अतिरिक्त अन्य दिव्य दर्शनों का बौद्ध धर्म विकता यह है कि ये धर्म महामात्र और कोई नहीं, वरन् से कोई सम्बन्ध नहीं है, इसके विपरीत इन सबका जैनधर्म में उल्लेख है। तीर्थङ्कर की माता को १६ स्वप्न पाते गुप्तचर थे जिन्हें चाणक्य के परामर्श से नियुक्त किया गया था। कौटिल्य अर्थशास्त्र" में इस प्रकार महामात्र हैं । इनमें हस्ति, विमान तथा अग्नि स्कंध भी है। श्वेता. " म्बर जैन मन्दिर में धातुओं के बने हुए इन स्वप्नों का नियुक्त करने का उल्लेख भी है। पर्युषण पर्व तथा अन्य धार्मिक उत्सवों पर प्रदर्शन भी द्वितीय, तृतीय तथा ६वें से १२वें अभिलेखों का विषय किया जाता है। लोकोपयोगी कार्य, प्रतिवेदन, दान तथा धर्म महिमा मादि से १६. डा० राजबलीकृत अशोक अभिलेख, पृष्ठ १९२ १८. मांस भक्षणम् प्रयुक्तं सर्वेषाम्, वही १७. 'अहिंसा-लक्षणो धर्मः' चाणक्य प्रणीत सूत्र ५६१, ११.अर्थशास्त्र, पृष्ठ ३९, ४० कौटिल्य अर्थशास्त्र ६८२

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