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जन संस्कृति और मौर्यकालीन प्रभिलेख
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अभिलेखों में प्रशोक का तथा शेष मे प्रियदर्शी का उल्लेख रत रहना पड़ा था। भाइयों को पराजित करने के पश्चात् है। इससे विदित होता है कि अशोक के लिए भी प्रिय- अशोक २७२ ई०पू० मे सिंहासनारूढ़ हुमा और अगले वर्ष दर्शी का प्रयोग होता था और ये समस्त अभिलेख उसी ही इन अभिलेखों को उत्कीर्ण कराया। के द्वारा उत्कीर्ण कराये गये है क्योकि इन समस्त अभि
जम्बूद्वीप मे जो देवता अमिश्र थे, उन्हें मिश्र बनाया लेखों के विषय मे समानता है।
गया इसकी व्याख्या के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद ___ इन अभिलेखों में से वैराट, मास्को तथा जटिंग रामे
है। कुछ विद्वानो के अनुसार, जम्बूद्वीप में जो देवता अमृषा श्वर को छोड कर शेष पाठ में २५६ अंकित है । व्यूलर
a (सत्य) थे, वे मृषा किये गये। इसके विपरीत अन्य का कथन है कि यह बुद्ध निर्वाण सम्वत है, परन्तु ऐसा विद्वानो का मत है कि प्रशोकने अपने धर्माचरण से जम्बुद्वीप मानने से अशोक का समय ५४४-२५६-२८८ ई० पू० को ऐसा पवित्र बना दिया कि यह देवलोक सदृश हो गया प्राता है, जव कि अशोक के राज्याभिषेक का समय २७२
और देव तथा मानव का अन्तर मिट गया।" परन्तु ये ई० पू० है। इससे अशोक और बद्ध निर्वाण की सगति
दोनों ही व्याख्यायें युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि पाली या ठीक नही बैठती है । अत: २५६ बुद्ध निर्वाण सम्वत नहीं प्राकृतमें सस्कृत मषा का रूप 'मुसा' होता है 'मिसा' नहीं। हो सकता । अाजकल इतिहासकारो का अभिमत है कि इसी प्रकार डेढ वर्ष के पराक्रम में अशोक ने जम्बूद्वीप इसका (२५६ का) अर्थ २५६वां पड़ाव है।'
को देवलोक सदश बना कर देव और मानव का अन्तर परन्तु यह भी यक्तिसंगत नही है क्योंकि एक के समाप्त कर दिया, यह बात भी हृदयग्राही नही है। अतिरिक्त शेष सात मे पडाव की क्रम सं० २५६ से कम जान सकता है कि इस उपर्यस्त वाक्य का वास्तअथवा अधिक होगी। पाठो मे ही पड़ाव क्रम सं० २५६ विक तात्पर्य क्या है। पामिश्र को प्रामिष पढ़ने पर प्रर्थ नही हो सकती। अत: २५६ का तात्पर्य २५६वा पड़ाव बिल्कल स्पष्ट हो जाता है, अर्थात् जम्बूद्वीप में जिन देवभी नहीं है।
तामों पर पशुबलि दी जाती थी, प्रशोक द्वारा अहिंसा अशोक राज्याभिषेक के प्रारम्भिक पाठ वर्षों में जैन
प्रचार से वह बन्द हो गई और उसके स्थान पर देवतामों धर्म का अनुयायी था, जैसा कि पहले वर्णन किया जा को मिष्ठान्न, अन्न, घृत, नारियल, फल, फूल आदि की चुका है । अतः २५६ वीर निर्वाण सम्वत है जो अभिलेखों बलि दी जाने लगी। वास्तव में, धर्म के नाम पर पशुपर उत्कीर्ण है । इस प्रकार इन अभिलेखो का निर्माण- बलि उस युग की सबसे बड़ी समस्या थी । अशोक ने काल ५२७-२५६-२७१ ई०पू० है, अर्थात् राज्याभि- अहिंसा प्रचार से इस समस्या का समाधान किया । इसी षेक के दूसरे वर्ष ही प्रशोक ने इन्हे उत्कीर्ण कराया था। तथ्य की प्रोर इन अभिलेखों में सकेत किया गया है । इस २५६ वीर निर्वाण सम्बत मानने से इसकी अशोक के कार्य में अशोक को जो सफलता मिली वह कोई पाश्चर्य शासनकाल तथा अभिलेखो मे वर्णित एक वर्ष और कुछ की अथवा अनहोनी बात नही है। भारतीय वाङ्मय में अधिक समय के पराक्रम से संगति टीक बैठती है। ढाई इस प्रकार के और भी उदाहरण मिलते है । काश्मीर के वर्ष के कम पराक्रम का समय राज्याभिषेक से पूर्व का जान राजा मेघवाहन द्वारा अहिंसा धर्म प्रचार का यह परिणाम पड़ता है जिसमें अशोक को अपने भाइयों के साथ संघर्प- निकला कि पशुबलि के स्थान पर मिष्ट अर्थात् माटे के ५. प्रियदर्शी का प्रयोग समस्त मौर्य सम्राटों के
. अशोक अभिलेख, पृष्ठ ११२ । लिए होता था, इसका विवरण प्रागे दिखाया गया ६. ५२७ ई० पू० भगवान महावीर का निर्वाण हुमा है।
१०. डा० राजबली पाण्डे कृत अशोक अभिलेख, पृ. ११२ ६. अशोक अभिलेख, पृष्ठ ११२ ।
११. वही ७. बुद्ध निर्वाण सम्वत ५४४ है।
१२. बलि का अर्थ भेंट है।